Uttar Pradesh

डिजिटल डिटॉक्स: क्या है डिजिटल डिटॉक्स? डॉक्टर से जानिए सेहत के लिए कितना असरदार है यह तरीका – उत्तर प्रदेश समाचार

आज की आधुनिक जिंदगी में मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया हमारी रोजमर्रा की आदतों का हिस्सा बन गए हैं। सुबह उठने से लेकर रात सोने तक हम स्क्रीन से जुड़े रहते हैं। कामकाज, पढ़ाई और मनोरंजन सब कुछ अब डिजिटल हो चुका है। लेकिन लगातार फोन और इंटरनेट पर व्यस्त रहना धीरे-धीरे हमारी सेहत, मानसिक शांति और रिश्तों पर असर डालता है। नींद पूरी नहीं हो पाती, ध्यान भटकता है और परिवार के साथ समय बिताने का मौका कम हो जाता है। ऐसे में डिजिटल डिटॉक्स यानी कुछ समय के लिए मोबाइल और इंटरनेट से दूरी बनाना बेहद जरूरी है।

यह हमें खुद से जुड़ने, प्रकृति के करीब जाने और अपनों के साथ समय बिताने का अवसर देता है। डिजिटल डिटॉक्स न सिर्फ तनाव और बेचैनी को कम करता है, बल्कि सोचने-समझने की क्षमता और रचनात्मकता भी बढ़ाता है। यह जीवन को संतुलित और खुशहाल बनाने की दिशा में एक छोटा लेकिन बहुत प्रभावी कदम है।

आज के समय में लोग मोबाइल, लैपटॉप और आईपैड पर जरूरत से ज्यादा समय बिताते हैं। हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ बैठकर बातचीत करने के बजाय फोन और सोशल मीडिया में ज्यादा खोए रहते हैं। इसका असर हमारी कम्युनिकेशन स्किल, सोचने-समझने की क्षमता और सामाजिक जुड़ाव पर पड़ता है।

जब दिमाग सिर्फ मोबाइल और लैपटॉप से आने वाली जानकारियां ही लेता रहता है, तो हम उसे सक्रिय रूप से इस्तेमाल नहीं कर पाते। इससे हमारी एनालिटिकल स्किल (विश्लेषण करने की क्षमता) और सोशल अट्रैक्शन स्किल (लोगों से जुड़ने की क्षमता) धीरे-धीरे कम होने लगती है। दिमाग का काम धीमा हो जाता है और सोचने-समझने में देरी होने लगती है।

डॉ. दिव्य ज्योति कहते हैं कि हमें अपने स्क्रीन टाइम पर ध्यान देना चाहिए। पूरी तरह से मोबाइल और लैपटॉप छोड़ना संभव नहीं है, लेकिन हमें केवल उतना ही प्रयोग करना चाहिए जितना जरूरी हो। बेवजह वीडियो, चैटिंग या सोशल मीडिया पर वक्त बर्बाद करने से बचना चाहिए। पहले लोग आपस में मिलकर बातें किया करते थे, लेकिन अब छोटी-छोटी बातों के लिए भी हम फोन का सहारा लेने लगे हैं। इसका असर हमारी भाषा और व्यवहार पर भी पड़ रहा है।

बच्चों की पढ़ाई में मोबाइल और लैपटॉप मददगार होते हैं, लेकिन यही बच्चे जब पढ़ाई के बजाय सोशल मीडिया और इंटरनेट पर समय बिताने लगते हैं तो यह उनके लिए हानिकारक हो जाता है। ज्यादा स्क्रीन टाइम के कारण बच्चे अपने भाई-बहनों, माता-पिता और रिश्तेदारों से भी दूर होने लगते हैं।

डॉ. ज्योति सलाह देते हैं कि बच्चों को पूरी तरह फोन से दूर करना सही नहीं है, लेकिन माता-पिता को यह देखना चाहिए कि बच्चा कितना समय स्क्रीन पर बिता रहा है। बच्चों को आउटडोर गेम्स, खेलकूद और अन्य गतिविधियों में व्यस्त रखना चाहिए, ताकि वे मोबाइल और लैपटॉप का कम इस्तेमाल करें और स्वस्थ व संतुलित जीवन जी सकें।

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