21वीं सदी में डिजिटल टेक्नोलॉजी ने हमारी जिंदगी के कई पहलुओं को बदलकर रख दिया है. हाल के वर्षों में चैटबॉट्स और जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे टूल्स ने पढ़ाई से लेकर सोचने-समझने के तरीके तक को बदल दिया है. लेकिन तकनीक का हमारे दिमाग पर क्या असर पड़ता है, इस पर लंबे समय से बहस चल रही है. खासकर ‘डिजिटल डिमेंशिया’ नामक सिद्धांत ने लोगों को डराया है कि स्मार्टफोन और इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल बुजुर्गों की याददाश्त पर बुरा असर डालता है.
हालांकि, अब इस डर को नई रिसर्च ने पूरी तरह खारिज कर दिया है. अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास और बेयलर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा की गई इस स्टडी के मुताबिक, 50 साल से अधिक उम्र के लोगों में कंप्यूटर, स्मार्टफोन और इंटरनेट का इस्तेमाल उनके मेंटल हेल्थ के लिए नुकसानदायक नहीं है. बल्कि, यह उनके दिमाग को एक्टिव बनाए रखने में मदद कर सकता है.
क्या कहती है रिसर्च?यह रिसर्च प्रसिद्ध साइंस जर्नल नेचर ह्युमन बिहेवियर में प्रकाशित हुई है. इसमें बताया गया है कि ‘डिजिटल डिमेंशिया’ के कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं. बुजुर्गों में टेक्नोलॉजी का नियमित और क्रिएटिव इस्तेमाल (जैसे ऑनलाइन न्यूज़ पढ़ना, वीडियो कॉलिंग, या ब्रेन गेम्स खेलना) उनके ब्रेन की काम करने की क्षमता को बनाए रखने में मदद करता है.
डिजिटल डिमेंशिया क्या है?‘डिजिटल डिमेंशिया’ का सिद्धांत पहली बार 2012 में जर्मन न्यूरोसाइंटिस्ट मैनफ्रेड स्पिट्जर ने पेश किया था. उनका मानना था कि टेक्नोलॉजी का ज्यादा इस्तेमाल इंसानों को मानसिक रूप से सुस्त बना रहा है, क्योंकि लोग अब फोन नंबर याद नहीं रखते, जानकारी गूगल करते हैं और स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताते हैं. लेकिन नई स्टडी कहती है कि टेक्नोलॉजी से सिर्फ खतरे नहीं, फायदे भी हैं, बशर्ते उसका इस्तेमाल सही तरीके से किया जाए. यह स्टडी बुजुर्गों को यह यकीन दिलाने में मदद कर सकती है कि डिजिटल युग में एक्टिव रहना उनकी सोचने-समझने की क्षमता को बनाए रखने का एक जरिया हो सकता है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
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