diabetic retinopathy symptoms| डायबिटीज से कौन सा अंग खराब होता है| diabetes eye damage

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diabetic retinopathy symptoms| डायबिटीज से कौन सा अंग खराब होता है| diabetes eye damage



डायबिटीज सिर्फ वयस्कों में होने वाली बीमारी नहीं है. अभी भी आमतौर पर लोग डायबिटीज को बढ़ती उम्र की बीमारी के रूप में जानते हैं. 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में बच्चों में डायबिटीज के 227580 मामलों की पुष्टि की गयी. आमतौर पर बच्चों में डायबिटीज का रिस्क 5-7 उम्र की से शुरू हो जाता है. जिसका निदान टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के रूप में लक्षणों के आधार पर हो सकता है. बच्चों में होने वाले डायबिटीज का मुख्य कारण जेनेटिक और पर्यावरणीय कारक होते हैं. क्योंकि डायबिटीज समय के साथ बिगड़ने वाली बीमारियों में से है, इसलिए इससे कम उम्र में आखों के डैमेज का खतरा भी बढ़ जाता है, जो कि डायबिटीज का एक कॉमन साइड इफेक्ट है. इस स्थिति को पीडियाट्रिक डायबिटिक रेटिनोपैथी (पीडीआर) के रूप में जाना जाता है.
यह समस्या खासतौर पर टाइप 1 डायबिटीज मेलिटस वाले बच्चों में ज्यादा कॉमन है. ऐसे में आई 7 अस्पताल लाजपत नगर और विजन आई क्लिनिक नई दिल्ली में सीनियर-कैटरेक्ट और रेटिना सर्जन डॉ. पवन गुप्ता बताते हैं कि ब्लड शुगर के बड़े रहने से रेटिना खराब होने का रिस्क बहुत ज्यादा होता है. बच्चों में ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करना वयस्कों की तुलना में ज्यादा कठिन होता है. ऐसे में जो लोग बचपन में डायबिटीज की चेपट में आते हैं, उनमें आंखों से संबंधित समस्याएं ज्यादा और गंभीर होती हैं. ऐसे में बचाव के लिए बचपन में ही बीमारी के शुरु होते ही कदम उठाना जरूरी होता है.
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पीडियाट्रिक डायबिटिक रेटिनोपैथी क्या है?
पीडियाट्रिक डायबिटिक रेटिनोपैथी वयस्कों की तरह ही होती है, जो केवल बच्चों में होती है. इसमें रेटिना डैमेज होने लगता है, जो आंख के पीछे टिश्यू की पतली परत है और इमेज को कैप्चर करके ब्रेन तक पहुंचाने का काम करती है. समय के साथ, हाई ब्लड शुगर रेटिना में छोटी खून की नसों को नुकसान पहुंचाती है, जिससे वे रिस जाती हैं, सूज जाती हैं, और असामान्य तरीके से बढ़ने का प्रयास करती हैं. 
बच्चों में मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी कितनी आम है?
डॉक्टर ने शोध का हवाला देते हुए बताया कि बाल मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी आमतौर पर बच्चे को लगभग पांच से दस साल तक टाइप 1 मधुमेह होने के बाद तक विकसित नहीं होती है. किशोरावस्था के अंत और 20 के दशक की शुरुआत में डायबिटिक रेटिनोपैथी के मामलों की रिपोर्टें हैं.
जोखिम कारक 
जोखिम से जुड़े दो प्रमुख कारक मधुमेह की अवधि और लंबे समय तक बढ़ा हुआ ब्लड शुगर होता है. जो बच्चे अपने मधुमेह का खराब प्रबंधन करते हैं, उन्हें मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी के जल्दी विकसित होने का खतरा अधिक होता है. कुल मिलाकर प्रभावित बच्चों का प्रतिशत अभी भी वयस्कों की तुलना में कम है, लेकिन प्रभाव कहीं अधिक गंभीर है.
पीडियाट्रिक डायबिटिक रेटिनोपैथी के स्टेज
– नॉन- प्रोग्रेसिव डायबिटिक रेटिनोपैथीइस अवस्था में रेटिना की रक्त वाहिकाओं में छोटे-छोटे उभार, जिन्हें माइक्रोएन्यूरिज़्म कहा जाता है, बनने लगते हैं. इन उभारों के कारण हल्के रक्तस्राव या तरल पदार्थ का रिसाव हो सकता है. इस अवस्था में अधिकतर बच्चे किसी भी तरह का दृष्टि बदलाव महसूस नहीं करते.
– मैकुलर एडिमाजब रेटिना के केंद्र में स्थित मैकुला में तरल पदार्थ का रिसाव होने लगता है, तो यह स्थिति मैकुलर एडिमा कहलाती है. मैकुला वह हिस्सा है जो साफ और केंद्रित दृष्टि के लिए जिम्मेदार होता है. इस स्थिति में बच्चा अक्सर धुंधली या विकृत दृष्टि की शिकायत करता है. 
– प्रोलाइफरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथीयह रेटिनोपैथी का एडवांस स्टेज होता है. इसमें रेटिना में नई असामान्य रक्त वाहिकाएं बनने लगती हैं, जिसे नियोवास्कुलराइजेशन कहते हैं. ये रक्त वाहिकाएं नाजुक होती हैं और इनमें से रक्तस्राव होने की आशंका अधिक होती है. यह अचानक और गंभीर दृष्टि हानि का कारण बन सकता है. यह एक गंभीर स्थिति है और यदि समय रहते उपचार न हो, तो हमेशा के लिए आंखों की रोशनी जा सकती है.  
उपचार विकल्प
डॉक्टर बताते हैं कि बच्चों में मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी के इलाज में आमतौर पर तीन प्रमुख उपाय किए जाते हैं. इसमे इंट्राविट्रियल एंटी-VEGF इंजेक्शन, लेजर ट्रीटमेंट और सर्जरी शामिल है. हालांकि ये ट्रिटमेंट विकल्प बीमारी के स्टेज के आधार पर अपनाएं जाते हैं. 
बचाव का तरीका
डॉक्टर पवन बताते हैं कि डायबिटीज संबंधी रेटिनोपैथी का खतरा बच्चों में बहुत अधिक होता है. ऐसे में एक बार जब किसी बच्चे को डायबिटीज का पता चल जाता है, तो पहला कदम उनके रेटिना की जांच करना होना चाहिए. इसका पता लगाने की जांच प्रक्रिया सरल और दर्द रहित होता है. हम पुतलियों को फैलाने के लिए बच्चे की आंखों में बूंदें डालते हैं, और विशेष उपकरणों की सहायता से सीधे रेटिना को देखते हैं. जितनी जल्दी हम किसी भी परिवर्तन का पता लगा सकते हैं, दृष्टि हानि को रोकने की संभावना उतनी ही बेहतर होती है.
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