डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जो शरीर में शुगर (ग्लूकोज) को प्रोसेस करने की क्षमता को नुकसान पहुंचाती है. यह समस्या जब प्रेग्नेंसी के साथ जुड़ती है, तो मां और बच्चे दोनों की सेहत के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है. खासतौर पर अगर महिला को पहले से ही टाइप-1 या टाइप-2 डायबिटीज है, तो गर्भावस्था के दौरान उसका मैनेजमेंट बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है. इस स्थिति को ‘प्री-एक्जिस्टिंग डायबिटीज’ या ‘प्रेगेस्टेशनल डायबिटीज’ कहा जाता है.
प्रेग्नेंसी पर कैसे असर डालती है डायबिटीज?अगर गर्भवती महिला का ब्लड शुगर लेवल लगातार अनकंट्रोल रहता है, तो इससे कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे-* शिशु का ज्यादा वजन (9 पाउंड से ज्यादा), जिससे नॉर्मल डिलीवरी में मुश्किल आती है* गर्भपात या मृत शिशु का जन्म (स्टिलबर्थ)* जन्मजात डिसऑर्डर जैसे दिल या न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स* ज्यादा अमनियोटिक फ्लूइड, जिससे समय से पहले प्रसव का खतरा* समय पूर्व प्रसव की आशंका
नवजात शिशु पर प्रभावडायबिटिक मां से जन्मे शिशुओं में जन्म के तुरंत बाद हाइपोग्लाइसीमिया (ब्लड शुगर की कमी), सांस लेने में तकलीफ, पीलिया जैसी समस्याएं देखी जा सकती हैं. कई बार ऐसे बच्चों को NICU (नवजात गहन देखभाल इकाई) में भर्ती करना पड़ता है. लंबे समय में ऐसे बच्चों में मोटापे और टाइप-2 डायबिटीज का खतरा भी बढ़ सकता है.
मां की सेहत पर असरगर्भवती महिला को प्रीक्लेम्पसिया (हाई ब्लड प्रेशन और पेशाब में प्रोटीन) का खतरा ज्यादा होता है. बड़ी संतान के कारण सी-सेक्शन की संभावना भी बढ़ जाती है. साथ ही, ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल देने से हाइपोग्लाइसीमिया या कीटोएसिडोसिस जैसी स्थितियां भी हो सकती हैं.
कैसे करें डायबिटीज को कंट्रोल?* प्रेग्नेंसी से पहले ही ब्लड शुगर कंट्रोल करें.* डॉक्टर की सलाह के अनुसार ब्लड शुगर की नियमित जांच करें.* इंसुलिन या दवाएं समय पर लें.* बैलेंस और पोषण से भरपूर डाइट लें.* हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करें (जैसे वॉकिंग), लेकिन डॉक्टर की सलाह से.* मेंटल हेल्थ का ख्याल रखें, तनाव से बचें.* धूम्रपान और शराब से पूरी तरह दूर रहें.* नियमित रूप से प्रेनेटल चेकअप करवाएं.