मुकेश कुमार राजपूत/बुलंदशहर. बुलंदशहर के विकास खंड ऊंचागांव क्षेत्र के गांव थाना गजरौला स्थित गंगा किनारे मांडव ऋषि का आश्रम आज भी द्वापर युग की यादें ताजा कर रहा है. द्वापर युग में मांडव ऋषि ने अपने शरीर को पत्थर का बना लिया था.आश्रम में लगी मांडव ऋषि की मूर्ति लोगों के आस्था का केंद्र बनी हुई है.

बुजुर्ग ग्रामीण जगत सिंह ने बताया कि मांडव ऋषि द्वापर युग में गंगा किनारे अपनी कुटिया में तपस्या कर रहे थे. तभी कुछ चोर कुंदनपुर कालांतर में आहार के महल से चोरी कर भाग गए और सैनिक उन चोरों का पीछा कर रहे थे. चोरों ने चोरी के सामान को कुटिया के पीछे रख दिया और सैनिकों की नजर उस सामान पर पड़ गई. मांडव ऋषि अपनी तपस्या में लीन थे. सैनिक उन्हें ढोंगी समझकर अपने साथ ले गए.

राजा ने सूली पर चढ़ाने का फरमान सुना दिया

सैनिकों ने राजा को एक ढोंगी संत के द्वारा चोरी करने की बात बताई. जिस पर राजा ने उनको सूली पर चढ़ाने का फरमान सुना दिया. उनको सूली पर तीन बार लटकाया गया, लेकिन सूली मुड़ गई. इससे सैनिक भौचक्के रह गए और राजा को वाक्या बताया. राजा वहां दौड़े चले आए और उनसे भूल में ऐसा हो जाने की बात कहते हुए क्षमा मांगी. इस पर मांडवा ऋषि ने कहा कि राजन दोष आपका नहीं है यह दोष धर्मराज का है. उनसे ही इस सवाल का जवाब पुछूंगा और वहां से चलकर धर्मराज के पास जा पहुंचे.

इसका उल्लेख शिव महापुराण में भी

उन्होंने धर्मराज से अपना दोष पूछा तो उन्होंने बताया कि आपने 5 वर्ष की अवस्था में एक कीड़े को तिनके से मार दिया था. इसलिए ही ऐसा हुआ. इस पर मांडवा ऋषि ने कहा कि 5 वर्ष का बच्चा अबोध होता है, इसलिए पाप का कोई प्रश्न ही नहीं उठता और उनको श्राप दिया कि आप पृथ्वी लोक पर जन्म लेंगे और सारे जीवन दासी पुत्र कहलवाकर हर पल तिरस्क्रत होते रहेंगे. बुजुर्गों ने बताया कि इसका उल्लेख शिव महापुराण में भी है.
.Tags: Bulandshahar, Bulandshahr news, Latest hindi news, UP newsFIRST PUBLISHED : June 05, 2023, 14:00 IST



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