वाराणसी : काशी, दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है. इस शहर को पूरी दुनिया में अपने ऐतिहासिकता के लिए जाना जाता है. इस अनोखे और अद्भुत शहर में दुनिया की सबसे अनोखा रामलीला भी होती है. इस रामलीला का इतिहास 242 साल पुराना है. इस अनोखी रामलीला में कई चीजें ऐसी भी होती हैं जो कहीं और देखने और सुनने को नहीं मिलती. आधुनिकता के इस दौर में भी यह रामलीला वैसी ही है जैसी 242 साल पहले हुआ करती थी.
रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला में आज भी शाही ठाठ-बाट नजर आते हैं. इस लीला को देखने खुद काशी नरेश हाथी पर सवार होकर आते हैं. उनके आगमन के साथ ही लीला की शुरुआत होती है. रामचरित मानस के चौपाइयों की शुरुआत से पहले यहां चुप रहो और सावधान की आवाज भी सुनाई देती है. फिर चौपाइयां गूंजने लगती है तो पूरा माहौल राममय हो जाता है.
1783 में हुई थी शुरुआत
बीएचयू के टूरिज्म डिपार्टमेंट के प्रोफेसर प्रवीण सिंह राणा ने बताया कि 1783 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने इस रामलीला की शुरुआत की थी तब से यह परम्परा चली आ रही है. इस रामलीला में आज भी अद्भुत शक्तियां है जो यहां भक्त और भगवान के बीच सेतु का काम करती है. यही वजह है कि इस लीला में शामिल होने वाले भक्त अपने कामकाज को छोड़ कर पूरे एक महीने तक इस लीला में शामिल होते हैं.
पेट्रोमेक्स की रोशनी में सफर जारी
242 साल पुराने इस रामलीला की खास बात ये भी है कि आज भी यह रामलीला लाइट की जगमगाहट के बीच नहीं बल्कि पेट्रोमेक्स की रोशनी में होती है. इसके लिए विशेष कारीगरों को बुलाया जाता है. हर दिन लीला स्थल पर करीब 2 दर्जन से ज्यादा पेट्रोमेक्स जलते हैं.
5 किलोमीटर के दायरे में होती है रामलीला
रामनगर की रामलीला के लिए कोई मंच भी फिक्स नहीं होता. बल्कि हर दिन इस लीला का मंचन अलग-अलग स्थानों पर किया जाता है. बिल्कुल वैसे ही जैसे 1783 में हुआ करता था. इस दौरान प्रभु राम, लक्ष्मण, जानकी भी भक्तों के कंधे पर सवार होकर निकल पड़ते है. पीछे-पीछे काशी नरेश भी हाथी पर सवार दिखते हैं. इस दौरान हर-हर महादेव और जय श्री राम के जयघोष भी गूंजते हैं.
इस दिन होगी शुरुआत
रामनगर के रामलीला की तैयारियां भी जोरों पर है. अन्नत चतुर्दशी से इस रामलीला की शुरुआत होती है फिर पूरे एक महीने तक लागातर यह लीला अलग-अलग स्थानों पर की जाती है.

