वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में दर्शन व्यवस्था को लेकर हाई पावर कमेटी की बैठक में बड़ा निर्णय लिया गया है. बैठक में तय हुआ है कि अब केवल सरकारी प्रोटोकॉल वाले श्रद्धालु, जैसे जनप्रतिनिधि, वरिष्ठ अधिकारी, और उनके परिजन ही वीआईपी दर्शन कर सकेंगे. आम भक्तों के लिए यह सुविधा बंद रहेगी. यह निर्णय समिति अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति अशोक कुमार, सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश मुकेश मिश्र और मंदिर के दो दर्जन सेवायतों की उपस्थिति में लिया गया है।
सेवायतों ने इस निर्णय पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि वीआईपी दर्शन की स्पष्ट कैटेगरी तय की जानी चाहिए. उन्होंने मांग की है कि सेवायतों के यजमानों को भी इस सूची में शामिल किया जाए. इस पर समिति अध्यक्ष ने साफ कहा है कि अभी के लिए केवल सरकारी प्रोटोकॉल वाले श्रद्धालु ही वीआईपी दर्शन कर सकेंगे. अन्य श्रेणियों पर चर्चा अगली बैठक में की जाएगी. सेवायतों का कहना है कि जैसे टोल प्लाज़ा या एयरपोर्ट पर प्रोटोकॉल की सूची सार्वजनिक रूप से लगाई जाती है, वैसे ही मंदिर में भी प्रोटोकॉल सूची प्रदर्शित की जानी चाहिए ताकि पारदर्शिता बनी रहे.
सेवायतों ने बताया है कि ठाकुरजी का भोग प्रसाद अर्पित करने और दैनिक सेवाओं के दौरान सेवादारों की संख्या काफी अधिक रहती है, जिससे मंदिर परिसर में भीड़ बढ़ती है. इस पर अध्यक्ष ने निर्देश दिया है कि सेवादारों की संख्या सीमित की जाए और उन्हें ड्रेसकोड व पास सिस्टम के तहत प्रवेश दिया जाए. सेवायतों ने यह भी मांग की है कि बंद कोठरी का ताला खोला जाए और सेवायत परिवारों को मंदिर सेवा के दौरान मिलने वाली सुविधाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए.
इस निर्णय के बाद श्रद्धालुओं में नाराजगी देखने को मिल रही है. आम भक्तों का कहना है कि भगवान के दर पर सभी एक समान हैं, फिर वीआईपी और आम भक्तों के बीच भेदभाव क्यों? भक्तों का यह भी कहना है कि मंदिर में भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा के लिए व्यवस्थाएं जरूरी हैं, लेकिन दर्शन में भेदभाव धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाता है.
प्रशासन का कहना है कि यह फैसला भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा कारणों से लिया गया है. त्योहारों और विशेष अवसरों पर लाखों श्रद्धालु मंदिर में आते हैं, जिससे प्रबंधन मुश्किल हो जाता है. ऐसे में केवल सरकारी प्रोटोकॉल वालों को वीआईपी दर्शन की अनुमति देना आवश्यक कदम है.

