Dementia Diagnosis: एक नई स्टडी के मुताबिक, डिमेंशिया से पीड़ित लोगों में लक्षणों के पहली बार दिखने के औसतन 3.5 साल बाद इसका डायग्नोसिस होता है. इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों में याददाश्त कम होना, शब्द खोजने में मुश्किलें आना, कंफ्यूजन के साथ मूड और बिहेवियर में चेंजेज शामिल हो सकते हैं.
डिमेंशिया का अजीब मामलाइंटरनेशनल जर्नल ऑफ जेरियाट्रिक साइकियाट्री में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि शुरुआत में कम उम्र और फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया दोनों ही डायग्नोसिस में लगने वाले ज्यादा वक्त से जुड़े थे. शुरुआती डिमेंशिया वाले लोगों के लिए, डायग्नोसिस में 4.1 साल लग सकते हैं, कुछ ग्रुप्स में लंबी देरी का एहसास होने की ज्यादा संभावना है.
ये बीमारी बनी चुनौतीयूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) में साइकेट्री डिवीजन के लीड ऑथर डॉ. वासिलिकी ऑर्गेटा (Dr. Vasiliki Orgeta) ने कहा, “डिमेंशिया का वक्त पर डायग्नोसिस एक बड़ा ग्लोबल चैलेंज बना हुआ है, जो फैक्टर्स के एक कॉम्पेक्स सेट के जरिए शेप लेता है, और इसे बेहतर बनाने के लिए खास हेल्थ केयर स्ट्रैटेजीज की तुरंत जरूरत है. वक्त पर डायग्नोसिस इलाज तक पहुंच में सुधार कर सकता है और, कुछ लोगों के लिए, लक्षणों के बिगड़ने से पहले हल्के डिमेंशिया के साथ जीने का समय बढ़ा सकता है.
इस तरह की गई स्टडीइसके लिए, यूसीएल के रिसर्चर्स ने यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और चीन में किए गए 13 पहले छपी स्टडीज के डेटा को रिव्यू, जिसमें 30,257 प्रतिभागियों का डेटा शामिल था. डिमेंशिया एक बढ़ता हुआ पब्लिक हेल्थ कंसर्न है, जो वर्ल्ड लेवल पर 57 मिलियन से ज्यादा लोगों को अफेक्ट करती है. स्टडीज का अनुमान है कि हाई इनकम वाले देशों में सिर्फ 50-65 फीसदी मामलों का ही डायग्नोसिस होता है, कई देशों में डायग्नोसिस रेट और भी कम है. डिमेंशिया का वक्त पर पता चलना अभी भी मुश्किल बना हुआ है, और इसे बेहतर बनाने के लिए खास हेल्थकेयर स्ट्रेजीज की तुरंत जरूरत है.
एजिंग से कंफ्यूज न करेंUCL के साइकेट्री डिवीजन के डॉ. फुआंग लियुंग (Dr. Phuong Leung) ने बताया कि “डिमेंशिया के लक्षणों को अक्सर नॉर्मल एजिंग के साथ कंफ्यूज किया जाता है, जबकि डर, कलंक और कम पब्लिक अवेयरनेस लोगों को मदद मांगने से डिसकरेज कर सकती है.”
अवेरनेस की जरूरतऑर्गेटा ने शुरुआती लक्षणों की समझ में सुधार करने और कलंक को कम करने, लोगों को जल्द मदद मांगने के लिए एनकरेज करने लिए पब्लिक अवेरनेस कैम्पेन की जरूरत पर जोर दिया. एक्सर्ट ने कहा, “शुरुआती पहचान और रेफरल में सुधार के लिए क्लीनिकल ट्रेनिंग अहम है, साथ ही शुरुआती इंटरवेंशन और निजी मदद तक पहुंच भी जरूरी है ताकि डिमेंशिया से पीड़ित लोगों और उनके परिवारों को जरूरी मदद मिल सके.”
(इनपुट-आईएएनएस)
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