दुनिया का 95% रोड ट्रांसपोर्ट फॉसिल फ्यूल यानी कोयले, तेल और गैस से बनने वाले ईंधन से चलता है. अगर ये ट्रांसपोर्ट ग्रीन एनर्जी से चलने लगे तो ट्रांसपोर्ट से पैदा होने वाले PM 2.5 यानी धूल के बारीक कणों और धुएं से होने वाली 4 लाख 60 हजार मौतें हर साल बचाई जा सकेगी. 32 लाख लोग फिजिकल एक्टिविटी ना करने की वजह से मारे जा रहे हैं – उन्हें भी चलने लायक छायादार सड़कें और फुटपाथ बनाकर बचाया जा सकता है.
दिल्ली एनसीआर में इन दिनों पीएम 2.5 के बढ़ने का कारण धुंध, कंस्ट्रक्शन और गाड़ियां हैं. इसी तरह दुनिया भर में गाड़ियों और फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होने वाले खराब ईंधन का प्रयोग कम हुआ है और पीएम 2.5 यानी धूल के बारीक कणों से होने वाली बीमारियां और मौतें घटी हैं. लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक 2005 में 14 लाख मौतों की वजह पीएम 2.5 के वो कण बने थे, जो कोयले जैसे फ्यूल से पैदा हो रहे थे. 2020 में इस वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा घटकर 12 लाख रह गया है.लैंसेट की रिपोर्टप्रदूषण को लेकर भी लैंसेट की रिपोर्ट ने सावधान किया है. हर मिनट हवा में घुल रही 1337 टन कार्बन डाई ऑक्साइड लोगों को जहरीली हवा में जीने को मजबूर कर रही है. हालांकि कोयले की खपत कम हुई है, लेकिन गाड़ियों से निकलने वाला धुआं अभी भी लोगों की जान ले रहा है. गाड़ियों से निकलने वाले PM 2.5 से ही सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है.
दिल्ली-एनसीआर सबसे ज्यादा प्रदूषितफिर भी दिल्ली एनसीआर इस समय दुनिया की सबसे प्रदूषित जगहों में पहले नंबर पर बने हुए हैं. यहां ना तो गाड़ियों की संख्या कम हो पाई और ना ही निर्माण बंद किए जा सके. जिससे तापमान कम होते ही मौसम धुएं की जहरीली चादर से भर गया है.
G-Ram-G bill introduced in LS amid din
NEW DELHI: The Lok Sabha on Tuesday witnessed fierce protests from Opposition members after the government introduced a…

