बच्चों और किशोरों में सुनने की क्षमता में कमी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, लेकिन हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में दावा किया गया है कि टीकाकरण के जरिए इसे बड़े स्तर पर रोका जा सकता है.
अध्ययन के अनुसार, 26 ऐसे संक्रामक रोगाणुओं की पहचान की गई है, जो सीधे तौर पर बहरेपन का कारण बन सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का भी कहना है कि बचपन में होने वाले बहरेपन के लगभग 60% मामले रूबेला और मेनिन्जाइटिस जैसे रोगों के कारण होते हैं, जिन्हें टीकाकरण से टाला जा सकता है.
1.5 अरब लोग बहरे होने की कगार पर
दुनिया भर में लगभग 1.5 अरब लोग किसी न किसी स्तर की सुनने की समस्या से जूझ रहे हैं. यह समस्या केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं है. छोटे बच्चों और किशोरों में भी यह समस्या बढ़ती जा रही है.
अध्ययन में सामने आए खतरनाक संक्रमण
कनाडा के मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ‘कम्युनिकेशन्स मेडिसिन’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में बताया कि कई आम बीमारियां जैसे खसरा, रूबेला, कण्ठमाला, मेनिन्जाइटिस आदि गर्भावस्था के दौरान या बचपन में सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती हैं. विशेषकर गर्भावस्था के दौरान रूबेला वायरस का संक्रमण भ्रूण के कान के विकास को प्रभावित कर सकता है और जन्मजात बहरापन का कारण बन सकता है.
बैक्टीरिया भी हैं जिम्मेदार
कुछ खतरनाक बैक्टीरिया जैसे हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा, स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया और निसेरिया मेनिनगिटिस, मेनिन्जाइटिस नामक बीमारी पैदा करते हैं. यह बीमारी मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के आसपास की झिल्ली में सूजन लाती है, जो स्थायी रूप से सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है.
विशेषज्ञों की राय
मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय की प्रोफेसर मीरा जौहरी के अनुसार अगर यह साबित होता है कि कोई टीका सिर्फ जान बचाने में ही नहीं, बल्कि सुनने की क्षमता जैसी अन्य डैमेज को भी रोक सकता है, तो हमें उन फायदों को भी नीतियों में शामिल करना चाहिए.
एजेंसी
Shivraj Patil’s last rites performed with state honours; Om Birla, Kharge present
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