चित्रकूट में पितृ पक्ष की अमावस्या बेहद खास होती है. इस जगह का कनेक्शन प्रभु श्रीराम से है. वे यहां सीता और लक्ष्मण के साथ लंबे समय तक रहे. अपने पिता महाराज दशरथ की प्रथम पिंडदान यहीं किया गया था. चित्रकूट में पितृ पक्ष का अंतिम चरण अब समाप्ति की ओर है. ऐसे में देशभर से श्रद्धालु अपने पितरों के तर्पण और पिंडदान के लिए गया का रुख करते हैं. लेकिन धार्मिक नगरी चित्रकूट में भी पितृ पक्ष अमावस्या पर विशेष मेला आयोजित होता है. इस बार रविवार को यह मेला आयोजित होने जा रहा है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते रहे हैं. इस दौरान श्रद्धालु मां मंदाकिनी नदी में स्नान कर अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान भी करते हैं.
चित्रकूट में पितृ पक्ष अमावस्या का विशेष महत्त्व है. कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान जब प्रभु श्रीराम चित्रकूट में थे, तभी उनके भाई भरत ने उन्हें पिता महाराज दशरथ के निधन का समाचार सुनाया था. उस समय प्रभु श्रीराम ने अपने पिता का प्रथम पिंडदान चित्रकूट के रामघाट पर ही किया था. तभी से यह स्थान राम गया के नाम से प्रसिद्ध हुआ और यहां पिंडदान की परंपरा आरंभ हुई है. चित्रकूट के पुजारी मोहित दास ने बताया कि चित्रकूट के इस मेले का महत्त्व गया जी से कम नहीं माना जाता. मान्यता है कि मंदाकिनी में स्नान कर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और श्रद्धालु को गया जी के समान पुण्य फल मिलता है. मंदाकिनी नदी का पवित्र जल न केवल पितरों की तृप्ति करता है, बल्कि भक्तों के पाप भी धो देता है. यही कारण है कि हजारों लोग प्रयागराज और दूसरे स्थानों से भी चित्रकूट पहुंचते हैं. प्रयागराज भी अपना पाप धोने चित्रकूट की मां मंदाकिनी नदी में आते हैं. इस लिए इस नदी का चित्रकूट में विशेष महत्त्व है.