चित्रकूट का भरत मिलाप मंदिर: एक प्रेम की कहानी जो पत्थरों को मोम की तरह पिघला देती है
चित्रकूट, उत्तर प्रदेश। यहां की हर कण दिव्यता और आस्था से भरा हुआ है। यह वह पवित्र भूमि है जहां भगवान श्रीराम ने अपने 14 वर्षों के वनवास में से 11 वर्ष 6 माह व्यतीत किए थे। इसी तपोभूमि में स्थित है एक अद्भुत और ऐतिहासिक स्थल भरत मिलाप मंदिर, जहां आज भी पत्थरों पर भगवान श्रीराम, माता सीता, भाई भरत और लक्ष्मण के चरण चिन्ह मौजूद हैं।
कहा जाता है कि जब इन देव चरणों ने भूमि को स्पर्श किया तो पत्थर मोम की तरह पिघल गए थे। यह मंदिर चित्रकूट की परिक्रमा मार्ग पर स्थित है। इसकी कथा अयोध्या के मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और उनके भाई भरत के अमर प्रेम से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि जब श्रीराम वनवास काल में चित्रकूट आए थे, तब अयोध्या में रह रहे भरत जी को जब यह समाचार मिला, तो वे श्रीराम को मनाने और उन्हें अयोध्या वापस ले जाने चित्रकूट पहुंचे थे।
भाइयों के गिरे आंसू
जैसे ही भरत ने अपने प्रिय भाई श्रीराम को देखा दोनों की आंखों से आंसू की धारा बहने लगी। श्रीराम ने भरत को गले लगाया और इस मिलन के भावुक क्षण ने समस्त वातावरण को भक्तिभाव से भर दिया था। कहा जाता है कि उस समय उपस्थित पत्थर भी इस प्रेम के साक्षी बने और वे मोम की तरह पिघल गए। आज भी उन पर प्रभु श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और भरत, शत्रुघ्न और कौशल्या के चरणों के निशान मौजूद हैं।
यहीं मिली भरत को खड़ाऊ
मंदिर के पुजारी शिववरण बताते हैं कि इस स्थान पर जड़ चेतन में परिवर्तन हुआ था, अर्थात जो निर्जीव था वह जीवंत बन गया, और जो जीवंत था वह स्थिर हो गया। जब दोनों भाइयों का मिलन हुआ था, तो प्रभु श्रीराम का धनुष-बाण उनके हाथों से गिर गया। दोनों भाई प्रेमवश एक-दूसरे से लिपट गए थे। उसी क्षण पत्थर उनके प्रेम से द्रवित होकर मुलायम हो गए थे। मंदिर के भीतर आज भी उन पत्थरों पर चरण और घुटनों के स्पष्ट निशान देखने को मिलता है। माता सीता के पादचिह्न भी इस मंदिर में उपस्थित हैं। इसी स्थान से भरत जी ने श्रीराम के चरणों से उनकी पादुका ग्रहण की थी, जिन्हें लेकर वे अयोध्या लौट गए और सिंहासन पर रखकर शासन चलाया था।
