How CAR-T Cell Therapy Works: किसी इंसान को कैंसर हो जाए तो उसको अपनी दुनिया खत्म होती हुई नजर आने लगती है, लेकिन अब उनकी जिंदगी में उम्मीद की किरण दिखने लगी है. 15 साल से ऊपर के कैंसर पेशेंट जो पारंपरिक इलाज कीमोथेरेपी (Chemotherapy) या बोन मैरो ट्रासप्लांट (Bone Marrow Transplant) पर ज्यादा रिस्पॉन्ड नहीं करते, उनके लिए मेड इन इंडिया सीएआर-टी सेल थेरेपी (CAR-T Cell Therapy) लाई गई है.  इसके जरिए बी सेल लिंफओमस (B-cell Lymphomas) और बी-एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया B-acute Lymphoblastic Leukaemia) का इलाज किया जाएगा

इतने मरीजों का सफल इलाज
कैंसर के इलाज के लिए ये थेरेपी दिल्ली के अस्पताल में उपलब्ध है. नवंबर 2022 से लेकर दिसंबर 2023 तक अपोलो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स ने 6 मरीजों को ये थेरेपी दी जो कामयाब रही है. इसमें 5 वयस्क और एक बच्चा शामिल था. इन मरीजों में से 4 को क्लिनिकल ट्रायल के तहत इंडिजिनस थेरेपी दी गई, जिनमें से 2 मरीजों ने कमर्शियली इंटरनेशनल सीएआर-टी सेल थेरेपी हासिल की.

अपोलो हॉस्पिटल्स इंटरप्राइजेज लिमिटेड में ऑन्कोलॉजी एंड इंटरनेशनल के ग्रुप प्रेसिडेंट दिनेश माधवन (Dinesh Madhavan) ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि इनमें से 3 कैंसर मरीजों ने सीएआर-टी सेल थेरेपी दिए जाने के बाद एक साल पूरा कर लिया है और अभी सेहतमंद हैं. इसके अलावा कम से कम 10 और पेशेंट को ये थेरेपी दी जा रही है, ये ट्रीटमेंट अब कमर्शियल तौर पर उपलब्ध होगा.

कितना खर्च आएगा?
दिनेश माधवन ने आगे कहा, ‘इस ट्रीटमेंट का खर्च 75 लाख से 90 लाख तक आएगा’ इस इंडिजिनस थेरेपी का अप्रूवल आ चुका है जिसके तहत बी सेल लिंफओमस (B-cell Lymphomas) और बी-एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के 15 साल से ऊपर के मरीज का इलाज किया जा सकेगा.
इस पेशेंट की सुनिए
चेन्नई के रहने वाली एक 32 साल की मरीज को भी सीएआर-टी सेल थेरेपी के जरिए जनवरी 2023 में इलाज किया गया. उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उनके लिए अपने परिवार से एक महीने से भी ज्यादा वक्त के लिए अलग रहना मुश्किल था, लेकिन अब वो ठीक है. इस महिला ने कहा. ‘अब में अपना जॉब और घर के काम कर सकती हूं.’
कैसे काम करती है ये थेरेपी?
डॉक्टर्स का कहना है कि सीएआर-टी सेल थेरेपी को अक्सर लिविंग ड्रग्स कहा जाता है, जिसमें कैंसर के मरीजों का टी सेल निकालते हैं. ये एक तरह का व्हाइट ब्लड सेल्स है जिसका काम कैंसर सेल से मुकाबला करना है. इसमें एक प्रोसेस यूज किया जाता है जिसका नाम अफेरेसिस (Apheresis) कहते हैं. इस टी सेल्स को सेफ व्हीकल के जरिए कंट्रोल्ड लैब में जेनेटिकली मोडिफाई किया जाता है. ताकि वो अपने सर्फेस पर मोडिफाई कनेक्टर को एक्सप्रेस कर सकें, जिसे काइमेरिक एंटिजेन रिसेप्टर्स (CARs) कहा जाता है. ये सीएआर खास तौर से डिजाइन किया जाता है, जिससे उस प्रोटीन को पहचाना जा सके जो कुछ सेल में एबनॉर्मल तरीके से एक्सप्रेस करता है. फिर इसे डोज के हिसाब से कई गुणा बढ़ाया जाता है आप सीधे पशेंट को इनफ्यूज किया जाता है. डॉ. अमिता महाजन (Dr. Amita Mahajan) का कहना है कि ये थेरेपी उन कैंसर के मरीजों को दी जाती है जिन पर हर तरह का स्ट्रैंडर्ड ट्रीटमेंट फेल हो चुका है.



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