भारत में “आई लव मुहम्मद” पोस्टर और बैनर चर्चा का विषय बने हुए हैं। उन्हें लेकर विवाद हो रहा है। पहले इसे कानपुर में दिखाया गया, फिर बरेली में फसाद से प्रदर्शन कर रहे लोगों ने ऐसे पोस्टर्स और बैनर्स दिखाए। बीते शुक्रवार को बरेली में ‘आई लव मोहम्मद’ अभियान के समर्थन में निकाली गई रैली के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई। उधर मुस्लिम नेता असादुदीन ओवैसी कह रहे हैं कि आई लव मुहम्मद कहने या बैनर्स दिखाने में बुरा क्या है।
अगर मीडिया रिपोर्ट्स की बात करें तो आई लव मुहम्मद विवाद उत्तर प्रदेश के कानपुर से शुरू हुआ। कहा जा रहा है कि कानपुर के रावतपुर इलाके (सैय्यद नगर) में रामनवमी शोभायात्रा के दौरान “आई लव मुहम्मद” के बैनर और पोस्टर दिखाए गए। इस घटना के बाद स्थानीय लोगों ने उस बैनर को विवादित बताया। उसके हटाने की मांग की। पुलिस ने हस्तक्षेप किया और मामला दर्ज किया गया। कई शहरों में फैल रहा इसके बाद ये विवाद अब देश के दूसरे शहरों तक भी फैलता दीख रहा है, जैसे – बरेली, गाज़ियाबाद, काशीपुर आदि जगहों तक। कानपुर में ‘आई लव मोहम्मद’ का बैनर लगाने को लेकर दर्ज हुई एफआईआर के बाद देश के कई शहरों में मुसलमानों ने ‘आई लव मोहम्मद’ अभियान चलाया और कई शहरों में प्रदर्शन हुए।
बरेली में इससे बवाल हो गया इसी सिलसिले में बरेली में इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौक़ीर रज़ा ने शुक्रवार यानी 26 सितंबर को लोगों से बरेली के इस्लामिया ग्राउंड में इकट्ठा होने की अपील की। फिर वहां बलवा हो गया। तनाव फैला। तनाव इतना ज्यादा हो गया कि प्रशासन को शहर को बंद करना पड़ा। इंटरनेट पर रोक लगा दी गई। ‘आई लव मोहम्मद’ कैम्पेन को लेकर काफी विवाद चल रहा है।
विवाद पैदा हो रहा ऐसे बैनर्स और पोस्टर्स से “आई लव मुहम्मद” जैसा वाक्य धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है; कुछ लोगों को यह प्रतीत हो रहा है कि इसे सार्वजनिक और प्रचारित रूप में इस्तेमाल करना अन्य समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है। यह विवाद राजनीतिक पटल पर भी आ चुका है।
दावा है कि इस तरह के बैनर या नारे धार्मिक सद्भाव को बिगाड़ने या समाज में विभाजन पैदा करने के लिए उपयोग किए जा रहे हैं। हालांकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असादुदीन ओवैसी का कहना है कि अगर इस देश में लोग आई लव मोदी और भगवानों के इस तरह पोस्टर्स दिखा सकते हैं, तो आई लव मुहम्मद में क्या बुरा है।
रिएक्शन में क्या सामने आ रहा इसी प्रतिक्रिया स्वरूप “आई लव महाकाल” जैसे पोस्टर्स लगाने का अभियान भी शुरू हो गया है, जिससे यह मुद्दा और संवेदनशील बन चुका है। ये मामला बढ़ने के साथ ही पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें होने की खबरें भी आ रही हैं।
खुफिया रिपोर्ट की बात करें तो ‘आई लव मोहम्मद’ टूलकिट हिंदू त्योहारों से पहले धार्मिक भावनाओं को भड़काने और विरोध प्रदर्शनों को हवा देने की सोची-समझी प्लानिंग है।
यूरोप में 20 साल पहले दिखाए जाते थे ऐसे पोस्टर दरअसल “I Love Muhammad” पोस्टर की शुरुआत यूरोप में करीब 20 साल पहले हुई थी। तब वहां भी इसे लेकर विवाद हुआ। भारत में दिखाए जा रहे पोस्टर्स और बैनर्स वहीं से प्रेरित लगते हैं। बस फर्क ये है कि वहा ये आंदोलन ज़्यादातर डिफेंसिव या सकारात्मक कैम्पेन के रूप में चला ताकि पैग़म्बर मोहम्मद के प्रति गलतफहमियों और इस्लामोफोबिया को चुनौती दी जा सके।
2005–2006 में जब डेनमार्क और फिर फ्रांस में पैग़म्बर मोहम्मद के कार्टून छापे गए तो इसके जवाब में यूरोप और अमेरिका में मुस्लिम संगठनों ने “We Love Muhammad” या “I Love Muhammad” जैसे बैनर्स और कैम्पेन चलाए। मक़सद यह दिखाना था कि मोहम्मद पैग़म्बर शांति, दया और इंसाफ़ के प्रतीक हैं।
ब्रिटेन में भी ऐसा कैंपेन चला ब्रिटेन में 2010 के दशक के दौरान “I Love Muhammad Day” नाम से कैम्पेन चला, जब सोशल मीडिया पर पैग़म्बर को लेकर अपमानजनक कंटेंट आया। वहां मुस्लिम युवाओं ने पब्लिक जगहों पर बैनर्स, टी-शर्ट्स, और सोशल मीडिया ट्रेंड्स के ज़रिये यह मूवमेंट चलाया। पाकिस्तान में अक्सर “लब्बैक या रसूल अल्लाह” (Labbaik Ya Rasool Allah) के नारे के साथ “आई लव मुहम्मद” लिखे बैनर और पोस्टर दिखाई देते हैं।
बस अंतर है कि यूरोप और अमेरिका में जब इस तरह के बैनर्स और पोस्टर्स दिखाए गए तो वो शांतिपूर्ण और आमतौर पर सकारात्मक थे। भारत में इसे लेकर विवाद हो गया है, यहां ये धार्मिक नारेबाज़ी और साम्प्रदायिक संवेदनशीलता से जुड़कर उभरा है।
भारत में ऐसे नारे की परंपरा पहले कभी नहीं थी भारत में “I Love Muhammad” नारा या बैनर लगाने की परंपरा पहले कभी नहीं मिलती। आमतौर पर मुस्लिम समाज में मोहम्मद पैग़म्बर के सम्मान में “नारे-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर”, “नारे-ए-रिसालत, या रसूल अल्लाह”, “लब्बैक या रसूल अल्लाह” जैसे नारे लगाए जाते रहे हैं। पोस्टर और बैनर पर ज़्यादातर “जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी मुबारक” या “हमारे पैग़म्बर रहमतुल-लिल-आलमीन हैं” जैसे वाक्य लिखे मिलते हैं। हर साल पैग़म्बर के जन्मदिन (ईद-ए-मिलादुन्नबी) के मौके पर जुलूस निकाले जाते हैं। इन जुलूसों में हरे झंडे, बैनर और पोस्टर्स पर पैग़म्बर की शान में शब्द लिखे जाते हैं। भारत में कभी अगर आई लव मुहम्मद को लेकर कुछ लिखा भी गया तो ये छिटपुट तौर पर सोशल मीडिया या छोटे और स्थानीय स्तर पर रहा होगा लेकिन ये कभी राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा विवाद नहीं बना।
अबका ये ताजा विवाद क्यों अलग इस बार मामला कानपुर से शुरू होकर कई शहरों मसलन बरेली, लखनऊ, भोपाल आदि तक फैल गया। इस बार पोस्टर और बैनर को सीधे सार्वजनिक-राजनीतिक माहौल से जोड़ा गया। ये धर्मों के बीच टकराव का रूप ले सकता है।