Uttar Pradesh

बावरा मन: विरासत की रियासत | – News in Hindi



एक हफ़्ते पहले जब हमने अपनी हैंडिक्राफ़्ट और हैंडलूम प्रदर्शनी का लखनऊ में आग़ाज़ किया, मन में शंका और दुविधा थी कि पता नहीं इस प्रदर्शनी को शहर में कैसा रिस्पांस मिलेगा. परंतु पिछले एक महीने की दौड़ भाग रंग लायी.बावरा मन खुश है कि हमारी प्रदर्शनी में प्रतिभाग करता हर एक क्राफ्टपर्सन, अपने घर वापिस बहुत ही संतुष्ट और तृप्त जा रहा है. उसे हम एक अच्छा वेन्यू, एक अच्छा माहौल और एक अच्छा क्लाइंटेल दे पाए हैं. ये भरोसा हो गया है कि अगले साल जब रियासत 2024 लौटेगा, उसके साथ ना सिर्फ़ ये सारे क्राफ्टपर्सन लौटेंगे बल्कि वो अपने साथ और भी आर्टिसंस ले कर आयेंगे.दरअसल इधर पिछले तीन सालों में कोरोना का अगर सबसे ज़्यादा असर किसी एक सेक्टर पर पड़ा है, तो वो है हैंडिक्राफ़्ट्स सेक्टर पर. जब पूरा देश महामारी से जूझ रहा था, लोगों के लिए घर चलाना और रोज़गार पाना मुश्किल हो गया था. कुछ की जेब ख़ाली और हाथ तंग था. ऐसी मायूस हालत में कोई भला हैंडिक्राफ़्ट्स और हैंडलूम की तरफ़ क्या ही रुख़ करता. लोग ख़ाना खाते, बच्चों को पढ़ाते, जीवन की न्यूनतम ज़रूरतें पूरी करते, या फिर अपने लिए हैंडिक्राफ़्ट ख़रीदते. एक बात पक्की है, जब पेट भरा होता है, तभी इंसान अच्छा कपड़ा पहनने की सोचता है, घर को सजाने के लिए साज़ो सामान ख़रीदता है.ख़ैर इधर हम देख रहे हैं कि पिछले तीन चार सालों की आर्थिक मार से अब हमारा समाज उबरने लगा है. मार्केट वापस पटरी पर आ रहा है. मेले सजने लगे हैं. क्राफ़्ट्स बाज़ार फिर आबाद हो रहे हैं. लोगों के जीवन में हैंडिक्राफ़्ट्स और हैंडलूम ने फिर से वापसी कर ली हैं. शायद यही कारण था कि यूपी क्राफ़्ट्स काउंसिल के सभी सदस्यों ने मीटिंग कर फ़ैसला लिया कि “साथी चलो, फिर से एक प्रदर्शनी की तैयारी की जाये.” चूँकि शुरुआत चार वर्षों बाद हो रही थी इसलिए पहले तो कदम ज़रा डगमगाए, लेकिन फिर सब लग गये काम पर.मणिपुर, राजस्थान, आँध्राप्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल मध्यप्रदेश, बिहार आदि से कलाकारों को निमंत्रण भेजा गया, स्टाल्स बुक किए गये. इस बात का ख़ास ख़्याल रखा गया कि महिला उद्यमियों को भी इस प्रदर्शनी में वाजिब मौजूदगी मिले. इन महिला उद्यमियों में जहां कुछ स्थानीय महिलाएँ थीं वहीं दूसरी ओर पूर्वोतर भारत के मणिपुर से आयीं दो युवतियाँ भी थीं. प्रदर्शनी में मणिपुर से आयीं यांगरीला के हाथों में लगातार बुनाई की सिलाई रहीं और वो जैसे ही ग्राहकों से फ़ुरसत पातीं, दोबारा बुनने में लग जातीं. उनके हाथ से बने मफलर, कैप्स, और छोटे बच्चों के बूटीज़, सबके लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए थे. मैंने भी ये प्यारी बूटीज़ ख़रीद लीं जबकि मेरी जान पहचान में कोई भी उतना नन्हा बच्चा नहीं है.उधर यांगरीला के ठीक सामने नेहा का स्टाल था. नेहा एक यंग आर्टिस्ट है. वो बोल सुन नहीं पाती है पर उसकी हर बात, उसकी सास समझ लेती है. हमारी प्रदर्शनी में नेहा द्वारा बनाये हुए स्टोन क्राफ्ट के नमूने और उसके बनाए पोर्ट्रेट्स, सबने बहुत पसंद किए. प्रदर्शनी के हमारे मुख्य अतिथि श्री राजेश्वर सिंह तो उसकी कला देख सिर्फ़ मंत्रमुग्ध ही नहीं, भावुक भी हो गये. नेहा तो नेहा, उसकी सास लक्ष्मीजी ने भी सभी आने जाने वालों पर अपना प्रभाव छोड़ा. नेहा की सास लक्ष्मी जी, पूरे हफ़्ते नेहा के साथ रहीं. कभी परछाईं बन कर तो कभी आवाज़ बन कर. वो नेहा और उसकी कला के क़द्रदानों के बीच की कड़ी बन गयी थीं.  यहाँ तक कि प्रदर्शनी की बाक़ी सभी महिला उद्यमियों की मदद के लिए भी लक्ष्मी जी पूरे समय हाज़िर रहीं. इस जोड़ी के अनूठे प्यारे संबंधों ने सास बहू के रिश्ते को एक नयी प्रेरणादायक परिभाषा दी.प्रेरणा की बात चली तो श्रीमती वंदना श्रीवास्तव का ज़िक्र ज़रूरी है. वंदना जी इस साल की हमारी “हॉल ऑफ़ फेम” की आर्टिस्ट थीं. हमारी इस प्रदर्शनी में उनकी बनायी हुई मधुबनी पेंटिंग्स, चर्चा का विषय रहीं. वंदना जी पिछले सत्रह सालों से अपने बेड से ही पेंट करती हैं. मधुबनी में, विश्व भर से विषय ले वो अपनी कल्पना की उड़ान भरती हैं. कभी रोम के कॉलोज़ियम को तो कभी पेरिस की आइफ़िल टावर को अपनी मधुबनी में उकेरती हैं.लेकिन मुझे सबसे ज़्यादा ख़ुशी हुई यूपी ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेंट के स्टाल को व्यवस्थित करती युवती, तारा चौधरी से मिल कर. तारा, यूपी के बलरामपुर ज़िले से है. तुलसीपुर तहसील के पंचपेड़वा में उसका गाँव पड़ता है. थारु जनजाति की ये नयी उम्र की लड़की, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से अपनी पीएचडी कर रही है. अपने थारु समुदाय के इतिहास को लेकर वो गहन अध्ययन में लगी है. स्टाल पर उनका साथ उनकी माताश्री दे रहीं हैं. तारा, चहकते हुए बड़े गर्व से कहती है कि जहां उनकी माताजी ने अपने गाँव के आसपास 40 गाँव भी नहीं देखे हैं, वहीं उसने थारु परंपराओं को भारत भर के अनेकों बड़े शहरों तक पहुँचाया है.ख़ैर, बावरा मन प्रदर्शनी, रियासत 2023 की सफलता इस साल इस बात से मानता है कि जाने अनजाने, बिना महिला आरक्षण बिल, हमारे पच्चास प्रतिशत स्टाल महिलाओं के नाम रहे. हमारे क्राफ़्ट्स काउंसिल की अपनी कमेटी में आज 95% महिला सदस्य हैं. और ये सब संभव हो पा रहा है उस संस्था में, जिनकी अपनी संस्थापक, एक महिला रहीं हैं। कमला चट्टोपाध्याय…कमला चट्टोपाध्याय : एक प्रेरणाकमलादेवी चट्टोपाध्याय, भारतीय समाजसुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, तथा भारतीय हस्तकला के क्षेत्र में नवजागरण लाने वाली गांधीवादी महिला थीं. उन्हें ना सिर्फ़ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान के लिए बल्कि स्वतंत्र भारत में भारतीय हस्तशिल्प, हथकरघा, और थियेटर के पुनर्जागरण के लिए, भारतीय महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक स्तर के उत्थान के लिए, हमेशा याद किया जाता है. ये उन्हीं की दूरदर्शिता थी कि जिसके कारण आज भारत में कई सांस्कृतिक संस्थान मौजूद हैं. जैसे, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, संगीत नाटक अकादमी, सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम और भारतीय शिल्प परिषद. कमला जी ने भारतीय लोगों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान में हस्तशिल्प और सहकारी आंदोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया था. उन्हें 1966 में रेमन मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया था. धन्यवाद!



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