Uttar Pradesh

Bareilly: राधेश्याम की ‘रामायण’ दुनियाभर में बरेली की पहचान को कर रही समृद्ध, जानिए मुख्य वजह



रिपोर्ट – अंश कुमार माथुरबरेली. बरेली के पंडित राधेश्याम कथावाचक ने पारसी थिएटर में हिंदी परंपरा की नींव रखी थी. इनके द्वारा रचित रामायण कथा हिंदी पट्टी के बड़े इलाके में कई दशकों से लोकप्रिय बनी हुई है. आपको बता दे जब उन्होंने न्यू अल्बर्ट कंपनी के लिए रामायण की स्क्रिप्ट सुधारने का काम शुरू किया था. उस वक्त पंडित राधेश्याम ने शायद सोचा भी ना होगा कि रामायण से जुड़कर उनको ऐसी ख्याति मिलेगी. जो समय की सीमा लांघकर वर्षों तक उनको लोगों के बीच अमर कर देगी.

25 नवंबर 1890 को बरेली में जन्मे कथावाचक पंडित राधेश्याम के घर के पास में चित्रकूट महल हुआ करता था. जहां शहर में आने वाली नाटक कंपनियों के लोग ठहरा करते थे. उनकी रिहर्सल के दौरान सुनाई देने वाला गीत संगीत उन्हें बचपन से ही लुभाता था. अपने पिता की नाटकों में कोई दिलचस्पी ना देखकर भी वे राग रागनियां से खूब वाकिफ थे.

चौपाई को सुनकर झूम उठते थे लोगरामलीला में वह चौपाई गाते थे तो सुनने वाले झूम उठते थे. पंडित राधेश्याम ने हारमोनियम बजाने और गाने की शुरुआती सलीका अपने पिता से ही सीख लिया था. रुकमणी मंगल की कथा कहने के लिए उनके पिता जब बाहर जाते थे तो उनके साथ ले जाते थे. पंडित राधेश्याम कथा के गीत गाते और अर्थ उनके पिता बताते थे. कुछ और ज्यादा करने के इरादे ने उनमें भजन लिखने की कला को खूब तराशा और इन्होंने गाने के लिए बरेली में देखे गए नाटकों के गानों की तर्ज पर धुन बनाना भी सीख लिया था.

बरेली के वरिष्ठ रंगकर्मी जेसी पालीवाल बताते है. पंडित राधेश्याम ने नाटकों के प्रति अपने लगाव को और बढ़ाया. बरेली आने वाली न्यू अल्फ्रेड नाटक कंपनी के नाटकों को देखकर उनका यह लगाव और बड़ा. पिता के साथ रामचरितमानस का पाठ करने के लिए महीने भर तक आनंद भवन में भी रहे. उन्होंने अपने जीवन काल में 57 पुस्तकें लिखीं. जिनमें से डेढ़ सौ से अधिक का संपादन भी खुद किया. अपनी इन रचनाओं के जरिए जनमानस के बीच वह आज भी अमर है. अब जिला प्रशासन ने उनको एक नई पहचान दी और एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के द्वारा उनके नाम पर शोध पीठ भी स्थापित की गई है.

अमेरिकी युनिवर्सिटी ने करवाया शोधअमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना की एसोसिएटेड प्रोफेसर पामेला लोथस्पाइस ने कथावाचक पंडित राधेश्याम के काम पर काफी शोध किया. 1939 से 1959 के बीच आए ‘राधेश्याम रामायण’ के संस्करणों का गहन अध्ययन किया. 1959 में प्रकाशित संस्करणों में करीब-करीब सभी शुद्ध हिंदी के शब्दों का प्रयोग किया गया है. इससे उनके द्वारा रचित रचनाओं में उस समय के हिंदी आंदोलन का असर भी कहा जा सकता है. वहीं अब यूनेस्को एवं भारत सरकार दोनों ही रामलीला को बढ़ावा देने में आगे नजर आ रही है.उत्तर प्रदेश के बरेली, पीलीभीत, बीसलपुर, पुरनपुर आदि स्थानों सहित बिहार के दरभंगा एवं ब्रज क्षेत्र में रामलीला कलाकार राधेश्याम रामायण से संवाद लेते हैं. वैसे तो उत्तर प्रदेश में बनारस ही एकमात्र ऐसी जगह है. जहां पर केवल तुलसीकृत रामायण को ही वरीयता दी जाती है. वरना आज भी अधिकांश जगहों पर पंडित राधेश्याम द्वारा रचित रामायण से ही संवादों पर कलाकार रामलीलाओं का मंचन करते हैं.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|Tags: Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : December 17, 2022, 14:31 IST



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