उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं आत्मनिर्भरता की नई मिसाल पेश कर रही हैं। जिले के फतेहपुर स्थित ‘मधुमक्खी वाला ब्रांड’ शहद उत्पादन प्लांट में कार्यरत महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे ‘बी वैक्स रोल कैंडल’ और दीपक अब देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी घरों को रोशन करेंगे। यूरोप तक इन इको-फ्रेंडली कैंडल्स की मांग बढ़ी है, जिससे ग्रामीण महिलाओं के जीवन में आर्थिक सशक्तिकरण का उजाला फैल रहा है।
बाराबंकी के निंदूरा राजौरी, चैनपुरवा और आसपास के गांवों की सैकड़ों महिलाएं आजीविका मिशन से जुड़कर ‘बी वैक्स रोल कैंडल’ बनाने का काम कर रही हैं। इन कैंडल्स की खासियत यह है कि इन्हें प्राकृतिक ‘बी वैक्स’ यानी मधुमक्खियों के मोम से तैयार किया जाता है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान नहीं होता, बल्कि घर में जलने के दौरान सुगंधित वातावरण भी बनता है। इन महिलाओं के हाथों से तैयार दीपक और कैंडल अब यूरोप समेत अन्य देशों में निर्यात किए जा रहे हैं।
महिलाओं के समूह से जुड़ी करीब डेढ़ सौ परिवारों की महिलाएं इन कैंडल्स और दीपकों को बनाने में जुटी हैं। यह काम उनके लिए आय का मजबूत साधन बन गया है। महिलाओं का कहना है कि उन्होंने अब तक लाखों दीपक और कैंडल बनाए हैं, जिनकी मांग लगातार बढ़ रही है। विदेशों से ऑर्डर मिलना उनके आत्मविश्वास और मेहनत का परिणाम है। अब महिलाएं घर बैठे रोजगार कर रही हैं, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।
दीपावली के लिए पांच लाख कैंडल बनाने का लक्ष्य दीपावली त्योहार को ध्यान में रखते हुए इस बार महिलाओं ने पांच लाख ‘बी वैक्स रोल कैंडल’ और दीपक तैयार करने का लक्ष्य रखा है। स्थानीय बाजारों के साथ-साथ विदेशों में भी इनकी डिमांड काफी बढ़ी है। समूह से जुड़ी महिलाएं दिन-रात मेहनत करके इस लक्ष्य को पूरा करने में जुटी हैं। उनका कहना है कि उन्हें इस काम से न केवल आत्मनिर्भरता मिली है, बल्कि समाज में एक पहचान भी बनी है।
उद्यमी निमित सिंह बने प्रेरणा के स्रोत ‘मधुमक्खी वाला ब्रांड’ के संचालक उद्यमी निमित सिंह ने बताया कि कैंडल और दीपक बनाने का कार्य पिछले तीन सालों से किया जा रहा है। बी वैक्स रोल कैंडल को खास पैकिंग में तैयार कर कीनिया और अन्य देशों में भेजा जा रहा है। इस बार उनका लक्ष्य पांच लाख कैंडल और दीपक तैयार कर स्थानीय बाजारों सहित विदेशों में सप्लाई करने का है। उन्होंने बताया कि इन कैंडल्स में किसी भी तरह का रंग या केमिकल इस्तेमाल नहीं किया जाता है, ताकि दीपावली पर लोग पर्यावरण के अनुकूल ‘इको-फ्रेंडली दीपक’ जला सकें। इससे प्रदूषण कम होगा और लोगों को स्वच्छ वातावरण में त्योहार मनाने का अवसर मिलेगा।
इको-फ्रेंडली उत्पादों से बदल रही सोच महिलाओं के बनाए इन प्राकृतिक मोम के दीपकों ने न केवल स्थानीय बाजारों में पहचान बनाई है, बल्कि लोगों की सोच भी बदली है। अब ग्रामीण इलाकों की महिलाएं भी आधुनिक बाजार की मांग को समझते हुए पर्यावरण अनुकूल उत्पाद तैयार कर रही हैं। यह पहल बाराबंकी को न सिर्फ आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ा रही है, बल्कि महिला सशक्तिकरण का प्रतीक भी बन गई है।