बलिया जिले में राजस्थान जैसा नजारा देखने को मिल रहा है. बलिया जिले के दुबहड़ थाना क्षेत्र के शिवपुर दियर नई बस्ती व्यासी गांव में एक परिवार ने अपने घर में ऊंट और ऊंटनी पालन शुरू किया है. यह परिवार ऊंटनी से इतना लगाव रखता है कि आज यह उनके जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी है. ऊंट और ऊंटनी के कारण यह गांव अब ‘ऊंट वाला गांव’ के नाम से जाना जाता है.
बलिया निवासी मोहर्रम अली बताते हैं कि ऊंटनी का दूध किसी औषधि से कम नहीं होता. जब ऊंटनी बच्चा देती है, तभी उसका दूध निकाला जाता है. वह खुद भी यह दूध पीते हैं और अपने परिवार को भी देते हैं. उनके मुताबिक, ऊंटनी का दूध स्वाद में मीठा और बेहद पौष्टिक होता है. यह गाय और भैंस के दूध से भी ज़्यादा फायदेमंद है. खास बात यह है कि ऊंटनी का दूध टीबी जैसी गंभीर बीमारियों में रामबाण साबित होता है. ऊंटनी का दूध-दही सभी की पसंद बना हुआ है. मोहर्रम अली बताते हैं कि जब उनकी ऊंटनी ने बच्चा दिया था, तो देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी. गांव के बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं सभी ऊंटनी को देखने और उसके दूध का स्वाद चखने को उत्साहित थे. कई लोग ऊंटनी के दूध से चाय बनाते हैं, तो कुछ लोग इसे दही के रूप में भी पसंद करते हैं. इसकी खासियतों के कारण ऊंटनी का दूध हजारों रुपए लीटर तक बिकता है. इसमें मौजूद औषधीय गुण इसे बेहद खास बनाते हैं.
राजस्थान की महक अब बलिया मेंराजस्थान की मिट्टी में पले-बढ़े ऊंट अब पूर्वांचल की गलियों में भी अपनी पहचान बना रहे हैं. बलिया का यह उदाहरण बताता है कि अगर जुनून और लगन हो, तो कुछ भी असंभव नहीं. मोहर्रम अली ने शौक के तौर पर ऊंट पालन शुरू किया था, लेकिन अब यह उनके जीवन का हिस्सा बन गया है. उनके पूर्वज भी ऊंट पालन करते आ रहे थे, और अब उन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है.