बलिया: तप और साधना की धरती बलिया हमेशा से ऋषि-मुनियों और संत महापुरुषों की कर्मभूमि रही है. इसी पावन भूमि पर जन्मे एक ऐसे संत की कथा आज भी लोगों के बीच श्रद्धा और रहस्य का विषय बनी हुई है, जिनकी वाणी में ब्रह्म का वास माना जाता था.
यह कहानी है त्रिकालदर्शी संत प्यारेनाथ बाबा की, जो न सिर्फ वर्तमान बल्कि भूत और भविष्य तक जानने की शक्ति रखते थे. बलिया जिले के जिगनी खास गांव में स्थित उनकी समाधि आज भी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनी हुई है. गांव के मनोहारी पोखरे के दक्षिण छोर पर स्थित इस समाधि स्थल पर मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से बाबा के चरणों में शीश झुकाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है. बाबा की महिमा और उनके चमत्कार आज भी लोगों की जुबान पर हैं.
जब चार भूखे युवकों को बाबा ने दी थी सीख
बुजुर्गों के अनुसार, प्यारेनाथ बाबा के जीवन की कई चमत्कारी घटनाएं आज भी गांव में सुनाई जाती हैं. प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि एक बार गांव के चार भूखे युवक बाबा के पास भोजन मांगने आए थे. बाबा ने प्रेमपूर्वक एक हांडी में चार मुठ्ठी चावल और थोड़ी दाल दी और कहा, “बेटा, भरपेट खा लेना और जो बच जाए उसे गाय माता को खिला देना.”
युवकों को लगा कि इतना थोड़ा भोजन काफी नहीं होगा, तो बाबा ने एक मुठ्ठी और दे दी. जब उस अनाज से खिचड़ी बनाई गई, तो चारों युवक भरपेट खा चुके, फिर भी आधी से ज्यादा खिचड़ी बच गई. लेकिन उन्होंने उस बचे हुए भोजन को गाय को खिलाने की बजाय कूड़ेदान में फेंक दिया और बाबा से झूठ बोल दिया कि कुछ नहीं बचा.
यह सुनकर बाबा मौन हो गए. लेकिन अंत में उन्होंने नाराज़ होकर एक वाक्य कहा, जो आज भी गांव के लोगों के जीवन से जुड़ा है.
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श्राप जो आज भी दिखता है असरबाबा ने नाराज़ होकर कहा –”भर कमइब, आध खइब, खपड़ा ले के कर खजुअइब!” (अर्थात – बहुत कमाओगे, आधा ही खा पाओगे, और बचे हुए में भी परेशानी होगी.) गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि यह श्राप आज भी गांव के लोगों की जिंदगी में देखने को मिलता है. यहां के लोग मेहनती और कमाई में आगे हैं, लेकिन किसी न किसी कारण से उनकी कमाई का सही उपयोग नहीं हो पाता.
साथ ही गांव में त्वचा रोगों की समस्या भी बनी रहती है, जिसे लोग बाबा के श्राप का असर मानते हैं. यह विश्वास लोगों की आस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है.
लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं बाबाप्यारेनाथ बाबा को गांव वाले कोई साधारण संत नहीं बल्कि साक्षात संतशक्ति मानते हैं. कहा जाता है कि उनकी वाणी में ऐसी शक्ति थी कि जो बोलते थे, वही होकर रहता था. आज भी बाबा की समाधि पर नारियल चढ़ाने की परंपरा निभाई जाती है. भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं और अपनी मनोकामनाएं बाबा के सामने रखते हैं. मान्यता है कि बाबा के दर से कोई भी खाली नहीं लौटता. बाबा की कथा, उनका श्राप और उनका आशीर्वाद आज भी बलिया और आसपास के इलाकों में गहरी आस्था और श्रद्धा का केंद्र बने हुए हैं.