उत्तर प्रदेश के बीहड़ इलाकों में शिक्षा की अलख जगाने वाला एक अनमोल उदाहरण है बहराइच जिले के कर्तानिया घाट जंगल के बीच स्थित भरथापुर गांव। यहां चारों ओर हरियाली और दो दिशाओं से बहती गेरुआ व कौड़ियाला नदी के बीच लगभग 400 लोगों की आबादी बसती है। इस गांव के प्राथमिक विद्यालय में रोजाना 45 नन्हे-मुन्ने बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते हैं।
यहां तक पहुंचना आसान नहीं है, नदी, जंगल और कीचड़ भरे रास्तों को पार करना पड़ता है। बावजूद इसके, पिछले 10 वर्षों से शिक्षक विनोद कुमार हर दिन यह कठिन सफर तय करते हैं ताकि गांव के बच्चों की पढ़ाई कभी रुके नहीं। उनकी लगन और समर्पण ने इस दुर्गम इलाके में शिक्षा की अलख जगा दी है।
आधुनिक सुविधाओं से वंचित गांव भरथापुर नेपाल बॉर्डर की दिशा में स्थित है, जिसके लिए पहुंचने के लिए पहले पार करनी पड़ती है गेरुआ नदी, फिर घना जंगल और उसके बाद कौड़ियाला नदी। इस पूरे रास्ते में आने-जाने का एकमात्र साधन है नाव और जंगल का संकरा रास्ता। इसी कठिन भौगोलिक स्थिति के बीच, राजस्व विभाग की जमीन पर बना है प्राथमिक विद्यालय भरथापुर, जहां केवल इसी गांव के 45 बच्चे पढ़ते हैं।
गांव की कुल आबादी लगभग 118 परिवारों की है। आधुनिक सुविधाओं से पूरी तरह वंचित इस गांव में न तो सड़क है, न बिजली, न ही कोई पक्का संसाधन। फिर भी कुछ अभिभावक अपने बच्चों को हर दिन इस विद्यालय भेजते हैं, ताकि कठिन परिस्थितियों के बावजूद शिक्षा की ज्योति जलती रहे।
शिक्षक विनोद कुमार हर दिन साहस की मिसाल पेश करते हैं। जौनपुर जिले के रहने वाले विनोद कुमार पिछले 10 सालों से भरथापुर प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। फिलहाल विद्यालय में अकेले शिक्षक होने की वजह से वे होलसेल इंचार्ज की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं।
हर सुबह वे गेरुआ और कौड़ियाला नदी पार करते हुए, घने जंगल से होकर विद्यालय पहुंचते हैं। यह सफर आसान नहीं है, कई बार उन्हें जंगली जानवरों से सामना करना पड़ा है। विनोद कुमार बताते हैं कि एक बार बारिश के मौसम में जब वे लगभग 6–7 किलोमीटर का जंगल का रास्ता पैदल पार कर रहे थे, तभी अचानक एक जंगली टस्कर हाथी ने उनका पीछा कर लिया।
उस वक्त उन्हें जान बचाने के लिए मेड़ का रास्ता छोड़कर सीधे जंगल की ओर भागना पड़ा और किसी तरह विद्यालय तक पहुंचे। विनोद बताते हैं कि उस दिन ऐसा लग रहा था मानो मौत सामने खड़ी हो। टस्कर हाथी बहुत आक्रामक होते हैं जब तक जान नहीं ले लेते, तब तक पीछा नहीं छोड़ते। अगर जंगल की ओर भागो तो तेंदुआ या बाघ का डर, और अगर रुको तो हाथी का।
लेकिन भगवान की कृपा से बच गया। फिर भी वे हर दिन उसी हिम्मत के साथ गांव के बच्चों को पढ़ाने निकलते हैं। स्कूल से 13 किलोमीटर दूर अपने कमरे पर लौटते समय गांववाले उन्हें सुरक्षित देखकर खुश हो जाते हैं। विनोद कहते हैं कि हर दिन एक नई जिंदगी लेकर लौटना जैसा एहसास होता है।
बारिश के मौसम में तो हालत और भी कठिन हो जाती है पेट तक पानी, हाथ में चप्पल और कीचड़ से भरे रास्ते। लेकिन विनोद कुमार की लगन और समर्पण न केवल भरथापुर गांव के बच्चों के लिए प्रेरणा है, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए एक मिसाल बन चुकी है।
विद्यालय में मौजूद सुख सुविधा भरथापुर प्राथमिक विद्यालय, भले ही घने जंगलों और नदियों के बीच बसा हो, लेकिन यहां भी बच्चों को सरकार की योजनाओं का पूरा लाभ मिल रहा है। अन्य विद्यालयों की तरह इस स्कूल में भी बच्चों के लिए मिड-डे मील, यूनिफॉर्म के पैसे और कक्षाओं में बैठने की व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती है।
हालांकि, विद्यालय में बच्चों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। इसका एक बड़ा कारण है कि गांव के अधिकांश लोगों के आधार कार्ड नहीं बने हैं, जिसके चलते कई सरकारी सुविधाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता। साथ ही, यह इलाका बेहद दुर्गम होने के कारण लोग जंगल से बाहर निकलने से भी कतराते हैं।
गांव के निवासी कौड़ियाला नदी पार करके लखीमपुर जिले के बाजारों तक पहुंचते हैं, जहां से वे अपने जरूरी सामान की खरीदारी करते हैं और फिर नाव या जंगल के रास्ते वापस लौट आते हैं। इन तमाम कठिनाइयों के बावजूद, गांव के बच्चे और शिक्षक शिक्षा की इस ज्योति को जलाए रखने में जुटे हैं।

