ayodhya ram mandir pran pratishtha why Rahul Gandhi Akhilesh Yadav distance from Ram Mandir know the political strategy:अयोध्या राम मंदिर: राहुल गांधी-अखिलेश यादव की अनुपस्थिति पर चर्चा

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अयोध्या.अयोध्या का राम मंदिर भारत में सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और राजनीतिक महत्व का केंद्र बन चुका है, खासकर इसके भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह और 5 जून 2025 यानी गुरुवार को प्रथम तल पर राजा राम के दरबार की स्थापना के बाद, लोगों में गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पल के साक्षी बनें. जहां एक ओर देश-विदेश की जानी-मानी हस्तियां, जैसे एलन मस्क के पिता एरोल मस्क और उनकी बहन एलेक्जेंड्रा मस्क, रामलला का आशीर्वाद लेने अयोध्या पहुंच चुके हैं, वहीं दो प्रमुख विपक्षी नेता- विपक्ष के नेता राहुल गांधी (कांग्रेस) और समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव- अभी तक  राम मंदिर नहीं पहुंचे. दोनों ही नेता लंदन से लेकर अमेरिका तक के दौरे कर रहे हैं. अब उनकी अनुपस्थिति ने सियासी चर्चाओं को जन्म दिया है.
राम मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह हिंदू राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रतीक भी है, जिसे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हमेशा बढ़ावा दिया है. मंदिर का निर्माण और इसका उद्घाटन 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. बीजेपी के लिए यह एक बड़ा सियासी कदम था, जिसने अपने मूल मतदाताओं से किए गए एक पुराने वादे को पूरा किया. हालांकि, मंदिर का इतिहास 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से जुड़ा है. जिसके बाद सांप्रदायिक तनाव बढ़ा और दो समुदायों खासकर मुस्लिम और हिन्दुओं के बीच ध्रुवीकरण हुआ. समय-समय पर इसका फायदा हर पार्टी ने उठाया, लेकिन मंदिर निर्माण के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की तरफ दूरी बना ली गई.
उत्तर प्रदेश, जहां 80 लोकसभा सीटें हैं, भारतीय राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण रणक्षेत्र है. राज्य की जनसांख्यिकी में करीब 20% मुस्लिम आबादी है, जो कांग्रेस और सपा जैसे दलों के लिए एक अहम वोट बैंक है. ये दोनों दल हमेशा से खुद को धर्मनिरपेक्ष और समावेशी बताते आए हैं. 2024 के आम चुनाव में बीजेपी को फैजाबाद लोकसभा सीट यानी अयोध्या सीट हार गई. यह हार बीजेपी के लिए ही नहीं देश भर में चर्चा का विषय बनी. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने इसे पीडीए की जीत करार दिया. उनकी तरफ से कहा गया कि मंदिर का आकर्षण सभी मतदाताओं पर प्रभावी नहीं रहा. कहा गया कि आरक्षण, संविधान, बेरोजगारी, महंगाई और अयोध्या में बुनियादी ढांचे के विकास के कारण विस्थापन जैसे मुद्दों ने भी स्थानीय मतदाताओं को प्रभावित किया.
राहुल गांधी और अखिलेश यादव की अनुपस्थिति: सियासी रणनीति?
राहुल गांधी और अखिलेश यादव का राम मंदिर न जाना, एक सोची-समझी सियासी रणनीति मानी जा सकती है. इसके पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं. पहला तो मुस्लिम वोट बैंक की रक्षा है. कांग्रेस और सपा दोनों ही उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन पर निर्भर हैं. राम मंदिर, जो बाबरी मस्जिद की जगह पर बना है, मुस्लिम समुदाय के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है. मंदिर का दौरा करना बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे का समर्थन माना जा सकता है, जिससे मुस्लिम मतदाता नाराज हो सकते हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कुछ पोस्ट इस बात की ओर इशारा करती हैं कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव मुस्लिम वोटों को प्राथमिकता दे रहे हैं और अयोध्या जाने से बच रहे हैं, ताकि बीजेपी के नैरेटिव से न जुड़ें.
धर्मनिरपेक्ष छवि बनाए रखना
दोस्सरी बात धर्मनिरपेक्ष छवि को लेकर है. कांग्रेस और सपा दोनों ही धर्मनिरपेक्षता के पैरोकार के रूप में अपनी पहचान बनाए रखना चाहते हैं और बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति का विरोध करते हैं. राहुल गांधी ने गुजरात और असम जैसे राज्यों में अन्य मंदिरों का दौरा किया है, ताकि बीजेपी के “कांग्रेस हिंदू-विरोधी है” वाले नैरेटिव का जवाब दिया जा सके, लेकिन ये मंदिर कम सियासी विवादों से जुड़े थे. दूसरी ओर, अयोध्या के राम मंदिर का दौरा करना, खासकर जब इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था, बीजेपी के वैचारिक ढांचे को स्वीकार करने जैसा माना जा सकता है. अखिलेश यादव भी वक्फ संशोधन बिल और बीजेपी पर सांप्रदायिक पक्षपात के आरोपों जैसे मुद्दों पर मुखर रहे हैं, ऐसे में अयोध्या जाना एक बड़े वोट बैंक को नाराज करने जैसा हो सकता है.

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