Uttar Pradesh

Ayodhya: अयोध्या के हनुमानगढ़ी सिद्ध पीठ का है अपना कानून, ऐसे चुने जाते हैं पीएम-राष्ट्रपति



रिपोर्ट : सर्वेश श्रीवास्तव
अयोध्या. सनातन परम्परा और हिंदू धर्म के प्रचा-प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका सिद्ध पीठों की भी रहती है. हिंदू धर्म में ऐसे कई पौराणिक और प्राचीन सिद्ध पीठ हैं जहां अपना नियम कानून चलता है. ऐसी की एक सिद्ध पीठ रामनगरी अयोध्या में भी है. हम बात कर रहे हैं अयोध्या के हनुमान गढ़ी सिद्ध पीठ की. जहां प्रधानमंत्री (चार पट्टी के महंत) से लेकर राष्ट्रपति (गद्दीनशीन) का अपना कानून है. आज आपको बताएंगे आखिर हनुमानगढ़ी के राष्ट्रपति यानी गद्दीनशीन कैसे बनते हैं? और यह भी बताएंगे कि गद्दीनशीन बनने के बाद किसी भी परिस्थिति में परिसर के बाहर क्यों नहीं निकलते हैं?
वैसे तो अपने सुना ही होगा की हर मठ-मंदिर में एक महंत होता है, लेकिन अयोध्या के हनुमानगढ़ी में चार पट्टी हैं, जिसके चार महंत होते हैं और एक गद्दीनशीन यानी प्रमुख होता हैं. हनुमानगढ़ी में रामानंदी संप्रदाय के निर्माणी अखाड़े के अंतर्गत वैष्णो साधु होते हैं जो चार पट्टी में विभक्त हैं. उज्जैनिया, सागरिया, बसंती और हरिद्वारी. यह 4 महंत हनुमानगढ़ी के प्रधानमंत्री होते हैं. इनके ऊपर एक राष्ट्रपति हैं, जिसे गद्दीनशीन कहा जाता है. बता दें कि हनुमानगढ़ी के पहले गद्दीनशीन अभय रामदास महाराज थे. सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी में वर्तमान गद्दीनशीन प्रेमदास हैं, जो 51वें गद्दीनशीन पर आसीन हैं. वर्तमान समय में सगरिया पट्टी के गद्दीनशीन बनाए गए हैं
जानिए कैसे बनते हैं गद्दीनशीनहनुमानगढ़ी के उज्जैनिया पट्टी के महंत राजू दास बताते हैं कि चार पट्टी के 3-3 लोगों का नाम अखाड़े में भेजा जाता है. अखाड़े के लोग चुनाव करते हैं कि वह व्यक्ति गद्दीनशीन बनने योग्य है या नहीं. चुनाव होने के बाद अखाड़ा पास करता है. उसके बाद बैठक होती है. बैठक में वरिष्ठ संत अखाड़े के लोग यह तय करते हैं कि कौन बनेगा गद्दीनशीन. फिर उसके बाद चुनाव होता है. तब सर्वसम्मति से गद्दीनशीन अपने आसन पर विराजमान होते हैं. हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास के मुताबिक, गद्दीनशीन 60 वर्षों के बाद बनाए जाते हैं. जब उम्र का पड़ाव अंतिम छोर पर होता है. मोह माया तमाम चीजों से व्यक्ति दूर हो जाता है. उस समय उस व्यक्ति को गद्दीनशीन पर बैठाया जाता है .
परिसर से बाहर क्यों नहीं निकलते गद्दीनशीनहनुमानगढ़ी पंचायती अखाड़ा का मठ है. यहां महंत गद्दीनशीन की नियुक्ति गुरु-चेला की परंपरा पर आधारित नहीं होती है. इसका निर्णय पंचांन अखाड़ा लेता है. उसी प्रकार चारों पट्टिओं के महंत की नियुक्ति डी पंचांन अखाडे ही करते हैं. यहां पर सब को एक समान का अधिकार होता है. परंपरा के अनुसार गद्दीनशीन का पद संभालने के बाद हनुमानगढ़ी के अपने नियम और संविधान के अनुसार गद्दीनशीन पर आसीन महंत अपने अंतिम पड़ाव तक हनुमानगढ़ी के परिसर में ही रहता है. 52 एकड़ में फैले हनुमानगढ़ी का परिसर के बाहर गद्दीनशीन नहीं निकलता. मृत्यु के बाद ही उनका शरीर परिसर के बाहर जा सकता है
हनुमान जी का स्वरूप होते हैं गद्दीनशीनवहीं, हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास के मुताबिक, गद्दीनशीन हनुमान जी की गद्दी मानी जाती है. ऐसे में उस पर आसीन होने वाले महंत को हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है. उस गद्दी पर आसीन होने वाले व्यक्ति का सिर्फ एक ही काम है. वह भगवान का भजन करें और आए हुए भक्तों को आशीर्वाद दे. गद्दीनशीन प्रसिद्ध सिद्ध गद्दी है. अगर गद्दीनशीन का किसी परिस्थितियों में तबीयत या कोई आरोप-प्रत्यारोप लगता है. तो डॉक्टर से लेकर कोर्ट का प्रतिनिधिमंडल भी गद्दीनशीन यानी हनुमानगढ़ी परिसर में ही आएगा. गद्दीनशीन बाहर नहीं जाएगा.
आजीवन गद्दी पर आसीन रहते हैं गद्दीनशीनहनुमानगढ़ी के महंत राजू दास बताते हैं की गद्दीनशीन पर आसीन होने के बाद महंत कि जब तक मृत्यु नहीं होती है तब तक वह गद्दी पर आसीन रहता है
(नोट- इसमें दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं, NEWS 18 LOCAL किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता. )ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: Ayodhya NewsFIRST PUBLISHED : August 01, 2022, 16:06 IST



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