धतूरा के औषधीय गुण: आयुर्वेद में कई ऐसे पौधे हैं जो गंभीर बीमारियों में लाभदायक होते हैं। इन्हीं में से एक है धतूरा का पौधा। यह पौधा जितना जहरीला माना जाता है, उतना ही असरदार भी है। अगर इसका सही तरीके से उपयोग किया जाए, खासतौर पर खांसी, बुखार, अस्थमा और सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं में यह बहुत कारगर होता है।
धतूरा एक झाड़ी जैसा पौधा होता है, जिसके फूल सफेद, बैंगनी या हल्के नीले रंग के होते हैं, इसके फल कांटेदार होते हैं और अंदर काले रंग के बीज पाए जाते हैं। धतूरा मुख्य रूप से गर्म और शुष्क जगहों पर उगता है।
धतूरा के औषधीय गुण:
धतूरा में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। खासकर यह पौधा खांसी, बुखार, अस्थमा और सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं में बहुत कारगर माना गया है। इसके पत्तों और बीजों का उपयोग कई तरह की दवाइयां बनाने में किया जाता है।
खांसी और जुकाम में लाभदायक:
धतूरा के पत्तों को सुखाकर या चूर्ण बनाकर औषधियों में मिलाया जाता है। यह खांसी और बलगम को कम करने में मदद करता है। अस्थमा में राहत:
अस्थमा के रोगियों को धतूरा की पत्तियों से विशेष दवा बनाई जाती है। इसका धुआं इनहेलेशन (सूंघने) में भी लाभकारी बताया गया है।
बुखार में कारगर:
धतूरा के अर्क का उपयोग बुखार कम करने में किया जाता है। आयुर्वेद में इसे ज्वर नाशक औषधि भी कहा गया है। इससे तमाम बीमारियों का खात्मा होता है।
मगर इसके उपयोग से पहले कुछ बातें इसके बारे में जान लेनी चाहिए कि इसका सेवन कैसे करना है। दर्द निवारण में उपयोगी:
धतूरा के पत्तों का लेप शरीर के दर्द और सूजन को कम करने में लगाया जाता है।
ऐसे करें सेवन:
जमुना प्रसाद यादव बताते हैं कि धतूरा के पत्तों को सुखाकर उसके धुएं का प्रयोग करने से खांसी जड़ से खत्म हो जाती है। उन्होंने बताया कि इसके बीजों का प्रयोग संशोधन करने के बाद ही करना चाहिए, क्योंकि वह बहुत जहरीला होता है।
जहर कम करने के उपाय:
संशोधन के लिए धतूर के बीजों को लगभग 24 घंटे गोमूत्र में भिगोकर रखना चाहिए, जिससे जहर की मात्रा कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि इसका प्रयोग बिना किसी वैद्य की सलाह के ना करें, क्योंकि यह आपके लिए घातक साबित हो सकता है।
उपयोग में बरतें सावधानी:
जमुना प्रसाद बताते हैं कि धतूरा जितना फायदेमंद है, उतना ही खतरनाक भी हो सकता है। अगर इसे बिना जानकारी या अधिक मात्रा में उपयोग किया जाए, इसमें मौजूद रासायनिक तत्व ज्यादा मात्रा में लेने पर शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए इसका प्रयोग किसी विशेषज्ञ वैद्य की देखरेख में ही करना चाहिए।