उत्तर प्रदेश के सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों में 79 प्रतिशत से अधिक सीटों की आरक्षित करने वाले आदेशों को निरस्त कर दिया गया है। यह आदेश अम्बेडकर नगर, कान्नौज, जालौन और सहारनपुर जिलों में चिकित्सा महाविद्यालयों में दिए गए थे।
अल्लाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच ने राज्य को 2006 के आरक्षण अधिनियम के अनुसार सीटें फिर से भरने का निर्देश दिया है, जिससे आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक न हो। यह निर्णय न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की बेंच ने गुरुवार को नीट कैंडिडेट साबरा अहमद की पेटीशन पर दिया है।
पेटीशनर साबरा अहमद ने नीट-2025 में 523 अंक हासिल किए थे और उनकी अखिल भारतीय Rank 29061 थी। उन्होंने तर्क दिया कि 2010 और 2015 के बीच जारी किए गए सरकारी आदेशों ने अवैध रूप से आरक्षण की सीमा को बढ़ा दिया है। उन्होंने तर्क दिया कि 2006 के आरक्षण अधिनियम के अनुसार आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत है, लेकिन सरकारी आदेशों ने इसे 79 प्रतिशत से अधिक कर दिया है।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की बेंच ने यह भी निर्देश दिया है कि सरकारी आदेशों को निरस्त करने के बाद, सीटें फिर से भरने के लिए एक नए प्रक्रिया का पालन किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होने दिया जाएगा।
यह निर्णय उत्तर प्रदेश सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है, क्योंकि उन्हें सीटें फिर से भरने के लिए एक नए प्रक्रिया का पालन करना होगा। यह निर्णय न केवल उत्तर प्रदेश के सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों में सीटों के लिए आरक्षण की सीमा को निर्धारित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह भारत में आरक्षण की नीति को भी प्रभावित कर सकता है।