वसीम अहमद/अलीगढ़. जैसे ही ट्रेन अलीगढ़ से दिल्ली की ओर जाती है, बाईं ओर, अलीगढ़ के रेलवे रोड के पार, एक ऊंची, किले जैसी संरचना देखी जाती है. यह एक सार्वजनिक पुस्तकालय है, जिसका नाम पंडित मदन मोहन मालवीय के नाम पर रखा गया. जो एक दो नहीं बल्कि 80,000 किताबों का पुस्तकालय संग्रालय है.
दरअसल जो बहुमंजिला इमारत है उसमें वर्तमान में हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी और संस्कृत जैसी विभिन्न भाषाओं में लगभग 80,000 किताबें हैं, जिनमें हिंदी सामग्री अन्य से अधिक हैं. यह एक सार्वजानिक पुस्तकालय है. जहां छात्र-छात्राएं आते है और अपने-अपने विषय की किताबों से अध्ययन करते हैं. जो कि बिलकुल मुफ्त है. यहां आने वाला स्टूडेंट्स कोई नीट की तो कोई पीसीएस तो कोई किसी अन्य विषय की तैयारी करता है.क्योंकि तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स को यहां उसकी जरूरत की सभी किताबें मिल जाती हैं.
जानिए कब हुई थी स्थापना?पुस्तकालय का नाम प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर अल्फ्रेड कॉमिन्स लायल के नाम पर रखा गया था. जिसे 1884 में नियुक्त किया गया था. पुस्तकालय को 1902 में पूरा किया जाना था, लेकिन 1904 में अस्तित्व में आया. यह 8 लाख रुपये का कुल खर्च और भारतवर्ष नेशनल एसोसिएशन ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है
उत्तर प्रदेश सरकार करती है मददपुस्तकालय के लाइब्रेरीयन गोरी शंकर शर्मा ने NEWS 18 LOCAL को बताया कि, 1947 में पुस्तकालय का नाम मदन मोहन मालवीय के नाम पर रखा गया था. बताया जाता है कि, मदन मोहन मालवीय ने हिंदी के लिए बहुत काम किया इसी वजह से इसका नाम मालवीय पुस्तकालय दिया गया. वर्तमान में इसमें उर्दू, फारसी, अरबी, हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में 80,000 पुस्तकें हैं. यह उत्तर प्रदेश सरकार से 5,000 रुपए के अनुदान पर चलता है. पुस्तकालय मे करीब 150 सदस्य हैं.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|Tags: Aligarh news, Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : November 04, 2022, 15:55 IST
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