अक्टूबर में लगा दें पालक की ये 6 किस्में, पत्तों से बरसेंगे 10 बार नोट!
अक्टूबर और नवंबर का महीना हरी पत्तेदार सब्जियां उगाने के लिए उत्तम माना जाता है. अगर आपके पास खाली खेत है तो आप इन दिनों पालक की फसल लगाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं. गौरतलब है कि पालक का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. पालक की बहुत सी ऐसी किस्म हैं जो 20 से 25 दिन में कटिंग के लिए तैयार हो जाती हैं, लेकिन किसानों को बुवाई करते समय चुनिंदा किस्मों का ही चुनाव करना चाहिए.
जिला उद्यान अधिकारी डॉ पुनीत कुमार पाठक ने बताया कि पालक की ‘आल ग्रीन’ किस्म एक लोकप्रिय और विश्वसनीय किस्म है, जो अपनी बेहतर पैदावार और प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है. यह किस्म 20 से 25 दिन में तैयार हो जाती है. खास बात यह है कि 120 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है, और किसान 6 से 7 कटिंग आसानी से ले सकते हैं.
अर्का अनुपमा पालक की एक उच्च उपज वाली संकर (हाइब्रिड) किस्म है, जिसे भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (IIHR), बैंगलोर ने विकसित किया है. यह किस्म किसानों को 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है. सही देखभाल करने पर 10 से 12 कटिंग आसानी से ले सकते हैं.
जोबनेर ग्रीन पालक की एक उन्नत किस्म है, जिसे राजस्थान के शुष्क जलवायु क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से विकसित किया गया है. यह किस्म अपनी विशेष अनुकूलन क्षमता और अच्छी पैदावार के लिए जानी जाती है. यह किस्म 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है.
पूसा भारती पालक की एक उन्नत किस्म है जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने विकसित किया है. यह किस्म अपनी उच्च गुणवत्ता और बेहतर उत्पादन के लिए जानी जाती है. यह किस्म किसानों को 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है, लेकिन तैयार होने में करीब 30 से 40 दिन लेती है.
पूसा हरित पालक की एक और लोकप्रिय और विश्वसनीय किस्म है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने विकसित किया है. यह किस्म अपनी तेजी से बढ़ने की क्षमता और अधिक पैदावार के लिए जानी जाती है. यह किस्म उच्च उत्पादन देने के लिए किसानों की पहली पसंद है. किसान एक हेक्टेयर से 500 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं.
अगर आप इन किस्मों को अक्टूबर में लगाते हैं, तो आप पत्तियों से 10 बार तक कमाई कर सकते हैं. इसलिए, अगर आपके पास खाली खेत है, तो आप इन दिनों पालक की फसल लगाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं.

