Uttar Pradesh

Agriculture Tips: खेत में घुमाओ सिर्फ एक रस्सी… और धान का दुश्मन कीट खुद गिरकर मर जाएगा! जानें करें इस्तेमाल

शाहजहांपुर: धान की फसल तैयार करने में किसान जी-जान से मेहनत करते हैं. लेकिन जब मेहनत की कमाई पर कीटों का हमला हो जाए तो न सिर्फ उत्पादन घटता है बल्कि लागत भी बढ़ जाती है. ऐसी ही एक बड़ी समस्या है पत्ता लपेटक कीट. यह छोटा सा कीड़ा धान की नरम पत्तियों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है और फसल कमजोर हो जाती है. अधिकतर किसान इसे खत्म करने के लिए महंगे रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं, जो जेब पर भारी पड़ता है और ज़मीन की सेहत भी बिगाड़ देता है.

हालांकि, शाहजहांपुर के कृषि विज्ञान केंद्र नियामतपुर में तैनात डॉ. एन.पी. गुप्ता ने इससे बचाव का एक देसी और आसान तरीका बताया है, जिसमें सिर्फ एक रस्सी की मदद से इस कीट को खेत से खत्म किया जा सकता है.

कैसे नुकसान पहुंचाता है पत्ता लपेटक कीट
पत्ता लपेटक कीट धान की पत्तियों पर हमला करता है. यह कीट पत्तियों के हरे हिस्से को खा जाता है. इसके बाद पत्तियां सूखने और जलने जैसी दिखने लगती हैं. कीट के हमले की वजह से पौधे में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है, जिससे वह खुद के लिए पर्याप्त भोजन नहीं बना पाता. यदि समय पर इस कीट को रोका न जाए, तो पौधे की वृद्धि रुक जाती है और फसल का उत्पादन कम हो जाता है.

रस्सी से करें पत्ता लपेटक कीट पर काबूडॉ. गुप्ता के मुताबिक किसान बिना किसी खर्च के इस कीट पर नियंत्रण कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें किसी महंगे रसायन की नहीं, बल्कि सिर्फ एक 10 मीटर लंबी रस्सी की जरूरत होगी.

रस्सी के दोनों सिरों को पकड़कर इसे धान की पंक्तियों के ऊपर से सुबह के समय घुमाना है. यह प्रक्रिया पूरे खेत में करें. इस दौरान ध्यान रखें कि खेत में थोड़ा पानी भरा हो, ताकि पत्तियों से गिरने वाला कीट पानी में डूबकर मर जाए. यही प्रक्रिया शाम के वक्त भी दोहराएं, क्योंकि यह कीट सुबह और शाम के समय सबसे ज़्यादा सक्रिय होते हैं.

यह तरीका जितना सरल है, उतना ही असरदार भी है. इससे न केवल कीट पर नियंत्रण मिलेगा, बल्कि किसान को रसायन पर पैसे भी खर्च नहीं करने पड़ेंगे.

रासायनिक कीटनाशक क्यों हैं नुकसानदायक
रासायनिक कीटनाशक इस्तेमाल करने से किसान की लागत बढ़ती है. ये कीटनाशक मिट्टी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे ज़मीन की उर्वरक क्षमता घट जाती है. इसके अलावा, इनका असर उपज की गुणवत्ता पर भी पड़ता है और यह मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक साबित हो सकते हैं.

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