खबर आई है कि बिहार की राजधानी पटना स्थित महावीर मंदिर अयोध्या में एक अस्पताल खोलने जा रही है. शुक्रवार को पटना में मीडिया को संबोधित करते हुए महावीर मंदिर न्यास समिति के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि यह प्रस्ताव उन्हें अयोध्या नगर निगम की तरफ से आया है. वे लोग इस अस्पताल के लिए उचित जगह पर रियायती दर पर जमीन उपलब्ध कराने की भी बात कर रहे हैं. यह खबर अयोध्या के लोगों के लिए, यूपी के लिए और देश के उन लोगों के लिए दिलचस्पी भरी हो सकती है, जिनकी राम जन्मभूमि में रुचि है. मगर उस बिहार के लिए यह खबर बहुत उत्साहवर्धक नहीं है, जहां आज भी लोगों को छोटी-छोटी बीमारियों के लिए पटना, दिल्ली और वेल्लौर के लिए दौड़ लगानी पड़ती है. उन्हें लगता है कि अभी उनकी जरूरत ही इतनी है कि वे दूसरों की मदद करने की स्थिति में नहीं हैं.
यह सच है कि महावीर मंदिर न्यास एक अलग तरह का धार्मिक संस्थान है. यह संस्थान दान में मिले पैसों का खर्च समाज की भलाई के लिए करता है. संस्थान द्वारा पांच बड़े अस्पताल संचालित किए जा रहे हैं. इन अस्पतालों में कैंसर रोगियों के लिए एक अलग डेडिकेटेड अस्पताल है. हृदय रोग, नेत्र रोग और बच्चों की बीमारियों के लिए भी अलग अस्पताल है. ये सभी अस्पताल बिहार की राजधानी पटना में संचालित हो रहे हैं. इसके अलावा कोरोना काल में संस्थान ने बेगूसराय में एक कोविड डेडिकेटेड अस्पताल भी खोला है. इसने ऑक्सीजन बैंड और गरीबों को निशुल्क भोजन की भी सुविधा उपलब्ध करायी.
न्यास के बनाए अस्पताल लोगों का बड़ा सहाराखास तौर पर महावीर कैंसर संस्थान बिहार के लिए एक बड़ा सहारा बनकर उभरा है. यह लंबे समय से बिहार के कैंसर पीड़ितों की मदद कर रहा है. उस वक्त से जब राज्य का कोई अस्पताल कैंसर का इलाज करने की विशेषज्ञता नहीं रखता था, लोगों को या तो जमशेदपुर के टाटा मेमोरियल अस्पताल या मुंबई के लिए दौड़ लगानी पड़ती थी. धीरे-धीरे महावीर कैंसर संस्थान ने यहां के लोगों का भरोसा जीता और अब यह राज्य के गरीब और निम्न आय के लोगों के लिए बड़ा मददगार साबित हो रहा है. यहां गरीब मरीजों की फीस भी माफ कर दी जाती है. इस संस्थान के रिसर्च से ही पता चला कि राज्य के किस-किस इलाके में लोग पानी में आर्सेनिक की अधिकता की वजह से कैंसर पीड़ित हो रहे हैं. यह निश्चित तौर पर सराहनीय पहल है.
इसके अलावा मंदिर का नेत्र अस्पताल भी उस वक्त से सेवा दे रहा है, जब राज्य में आंख के अच्छे अस्पताल नहीं थे. अभी हाल ही में मंदिर के हृदय रोग अस्पताल ने बच्चों के दिल में छेद का सफल ऑपरेशन किया. ये सभी अस्पताल बेहतर गुणवत्ता के साथ राज्य के गरीब लोगों की मदद कर रहे हैं. मगर सच यह भी है कि ये बिहार जैसे राज्य के लिए काफी नहीं हैं. इस बात की पुष्टि के लिए किसी आंकड़े की जरूरत नहीं है. एम्स दिल्ली और वेल्लौर के केएमसी अस्पताल में जाने वाला कोई भी व्यक्ति वहां बिहार के लोगों की भीड़ को देखकर समझ सकता है.
कोरोनाकाल में अस्पतालों की हकीकत सामने आईइस कोरोनाकाल में यह बात और गंभीरता से उजागर हुई. सभी लोगों ने देखा कि यहां के सरकारी अस्पताल मैनपावर के अभाव में बीमारों की मदद करने में सक्षम साबित नहीं हो पा रहे हैं. गांव को अस्पतालों में भूखा भरा था, ऐसी तस्वीरें खूब वायरल हुईं. खुद राज्य सरकार ने भी स्वीकार किया कि राज्य में 1400 से अधिक अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बंद पड़े हैं. जाहिर है स्वास्थ्य के मामले में बिहार अभी बहुत बुरी स्थिति से गुजर रहा है. अभी इसे ऐसे कई अस्पतालों की जरूरत है. खास तौर पर बिहार के अलग-अलग इलाकों में. उत्तर बिहार में इन दिनों एम्स को लेकर कई आंदोलन भी चल रहे हैं.
यह सच है कि महावीर मंदिर न्यास एक स्वायत्त संस्था है. जरूर बिहार के लोग इसे राशि दान करते हैं, मगर दानकर्ताओं का उस पर कोई जोर नहीं चल सकता. वह तमाम फैसले अपनी परिस्थिति, रुचि और क्षमता के हिसाब से लेती है. हम उस पर दबाव नहीं डाल सकते, मगर सलाह तो दे ही सकते हैं.
महावीर मंदिर न्यास के वर्तमान सचिव आचार्य किशोर कुणाल की विशेष रुचि अयोध्या के राम मंदिर में रही है. जब राम मंदिर का मुकदमा चल रहा था तो उस दौरान वे भी एक पक्ष थे. उन्होंने अयोध्या में राममंदिर की ऐतिहासिक प्रामाणिकता पर एक किताब भी लिखी है. जब अदालत का फैसला राम मंदिर के पक्ष में आया तो उन्होंने इसके निर्माण के लिए तत्काल मंदिर की तरफ से 10 करोड़ रुपये देने की घोषणा की. इसमें से दो करोड़ रुपये पिछले साल दे भी चुके हैं. अयोध्या में सीता रसोई का संचालन भी मंदिर द्वारा लंबे समय से किया जा रहा है. अब तक बिहार में स्वास्थ्य औऱ दूसरे मसलों पर सक्रिय रहने वाला यह मंदिर इन दिनों पूरी तरह अयोध्या की तरफ केंद्रित हो चुका है.
निश्चित तौर पर यह मंदिर न्यास के सचिव किशोर कुणाल की विशेष अभिरुचि की वजह से है. वरना पटना के हनुमान मंदिर में दर्शन देने और चढ़ावा चढ़ाने वाले तो ज्यादातर बिहार के लोग ही होते हैं. यह भी सच है कि इस मंदिर को एक समाजोपयोगी संस्था में बदलने का श्रेय भी आचार्य किशोर कुणाल को ही जाता है. इन तमाम अस्पतालों की स्थापना उनके ही विजन से हुई है.
किशोर कुणाल के नाम कई उपलब्धिइसके अलावा उन्हें इस बात का भी श्रेय जाता है कि बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने काफी पहले बिहार के कई मंदिरों में दलित पुजारियों की नियुक्ति की थी. उस काम को आज तमिलनाडु और केरल में किया जा रहा है. उन्होंने दलित देवो भवः नाम की एक किताब भी लिखी थी, जिसमें हिंदू धर्म में दलितों की भूमिका और जुड़ाव के बारे में विस्तार से लिखा है. ये उदाहरण बताते हैं कि धर्म को भी लेकर उनका नजरिया अलग है.
ऐसे में उनसे यह अपेक्षा करना कि वे पहले बिहार की स्थिति पर विचार करेंगे, फिर बाहर के लोगों के लिए सोचेंगे अनुचित नहीं होगा. राम के घर अयोध्या पर अभी पूरी दुनिया की निगाह है. वहां मंदिर निर्माण के लिए इतना चंदा आ चुका है कि उससे भव्य मंदिर के साथ-साथ कई अस्पताल बन सकते हैं. मर सीता के मायके बिहार और मिथिला की बदहाल स्थिति पर किसी की नजर नहीं है. वे अगर अपना फोकस अभी इधर रखें तो यह ज्यादा उपयुक्त बात होगी.
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