लखीमपुर खीरी में आलू की खेती: दिसंबर में सिंचाई के दौरान सावधानी बरतनी होती है
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में सर्दियों के मौसम में बड़े पैमाने पर आलू की खेती की जाती है. आलू की खेती करने वाले किसानों को अच्छा खासा मुनाफा होता है. ऐसे में आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है. आलू की डिमांड सालभर मार्केट में रहती है. वहीं दिसंबर के महीने में आलू की खेती करने वाले किसान अपने खेतों में सिंचाई करते हैं. सिंचाई करने के दौरान थोड़ी सी लापरवाही आलू की फसल पर भारी पड़ सकती है. ऐसे में फसल का उत्पादन के साथ-साथ काफी नुकसान भी हो सकता है.
जमुनाबाद कृषि विज्ञान केंद्र पर तैनात कृषि वैज्ञानिक डॉ सुहेल खान ने जानकारी देते हुए बताया कि खीरी जिले में किसान आलू की खेती करते हैं. ऐसे में अगर आप दिसंबर के महीने में आलू की फसल में सिंचाई कर रहे हैं, तो विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. जब खेत की नमी हल्की कम हो जाए और मिट्टी भुरभुरी हो जाए, तब मिट्टी चढ़ाना सबसे अच्छा तरीका माना जाता है. बहुत गीली मिट्टी में चढ़ाई करने से गांठें व पौधों को नुकसान हो सकता है.
मिट्टी की चढ़ाई का मुख्य उद्देश्य आलू के कंदों को मिट्टी की परत के अंदर सुरक्षित रखना होता है. यदि कंद ऊपर आ जाते हैं तो धूप लगने से वे हरे पड़ जाते हैं, जिन्हें खाने योग्य नहीं माना जाता. मिट्टी चढ़ाने से पौधों के तनों को सहारा मिलता है, जिससे वे तेज हवाओं में भी गिरते नहीं. साथ ही खरपतवार नियंत्रण में भी यह प्रक्रिया अहम भूमिका निभाती है, क्योंकि चढ़ाई के दौरान खेत की सतह पर उगे घास-फूस को आसानी से नष्ट किया जा सकता है. खरपतवार पर अगर नियंत्रण नहीं पाया गया तो उत्पादन में भी कमी आती है. ऐसे में आप खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए कीटनाशक दवाओं का भी छिड़काव कर सकते हैं.
नाइट्रोजन देने का सही समय और तरीका
नाइट्रोजन (यूरिया) और फास्फोरस को मिलाकर आलू की फसल डाल दें. इसे दोपहर के समय में डालें ताकि पत्तियों को नुकसान न हो और पानी के साथ यह जड़ों तक पहुंचे. नाइट्रोजन 45-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दें. फास्फोरस 45-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर. पोटैशियम 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से दे सकते हैं. इससे आलू की फसल को अच्छा पोषण मिलेगा और उत्पादन में भी वृद्धि होगी.

