Uttar Pradesh

आज भी वचन निभाने आते हैं पांचों पांडव, बुलाने के लिए करना होता है यह नृत्य



विशाल झा/ गाजियाबाद: हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड अपने प्राचीन मंदिर, मन को मोह लेने वाली खूबसूरती और सांस्कृतिक धरोहरों के कारण पूरे विश्व में मशहूर है. यहां की लोक कलाएं और लोक संगीत बरसों से भारत की प्राचीन कथाओं के इतिहास के बारे में बताती है. उत्तराखंड की प्राचीन परंपरा के साथ पांडव नृत्य का नाम भी जुड़ा हुआ है.जानकारी के मुताबिक पांडव नृत्य कोई साधारण नृत्य नहीं है. बल्कि अपने साथ कई रहस्य और किस्सों को समेटे हुए है. इस नृत्य के बारे में दावा किया जाता है कि जब यह नृत्य किया जाता है तो शरीर पर पांडवों की आत्मा आ जाती है. जब भी नृत्य खत्म होता है तो वह आत्मा चली जाती है. यह आत्मा किसी को नुकसान तो नहीं पहुंचाती, लेकिन ढोल की धुन पर जमकर अपना उत्साह दिखाती है. गढ़वाल क्षेत्र के अलावा शहरी क्षेत्र में भी अगर पांडव नृत्य का आयोजन होता है तो गंगाजल की बोतल साथ रखी जाती है. यह नृत्य क्यों और कैसे मनाया जाता है.आज भी अपना वचन निभाते हैं पांडवआचार्य कृष्णानंद नौटियाल ने  कहा कि जब पांडवों को उनके गुरु ने उनके हाथों का जल पीने के लिए मना कर दिया तो पांडवों ने चौक कर इसका कारण पूछा तब उनके गुरु ने कहा की पांडवों पर कई हत्याओं का पाप था. इसलिए पांडवों को उत्तराखंड जाकर केदार बाबा के दर्शन के लिए सुझाव दिया. जब पांडव उत्तराखंड पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत किया गया. जब पांडव केदार घाटी पहुंचे तो उनको बहुत अच्छा माहौल दिखा. तब पांडवों ने कहा की हम हथियार के बिना इस घाटी में आगे बढ़ना चाहते हैं. तब उत्तराखंड वासियो ने पांडवों के वो हथियार ले लिए और उसको पूजा का सामान बना लिया. इसलिए अभी भी अनेक गावों में उनके अस्त्र -शस्त्र की पूजा की जाती है. साथ ही साथ यह भी कहा जाता है कि उस वक़्त उत्तराखंड वासियों ने पांडवों से एक वचन लिया था. वो ये था की जब भी नृत्य के माध्यम से पांडवों का बुलाया जाएगा तब वो मानव रथ शरीर पर आत्मा बन कर आएंगे और वो आज भी ऐसा करते हैं. ये नृत्य जहां भी होता है वहां सजावट की जाती है, पूजा -पाठ किया गया था. उत्तराखंड के लोगों के लिए पांडव उनके ग्राम देवता के रूप में पूजे जाते है.पारिवारिक है यह परंपराढोल और दमाऊ उत्तराखंड के पारंपरिक वाघ यंत्र है. हिंदू वाद्य यंत्र द्वारा पांडव नृत्य में जो पांडव बनते हैं उनका विशेष ठप द्वारा अवतरित किया जाता है और उनको पांडव पश्व कहा जाता है. पांडवों की आत्मा उन्हीं लोगों पर आती है जिनके परिवार में यह पहले भी अवतरित होते आए हों. इस लोक नृत्य के वक़्त वादक ढोल-दमाऊ की विभिन्न तालों पर महाभारत के आवश्यक प्रसंगों का भी गायन करते हैं..FIRST PUBLISHED : October 3, 2023, 23:48 IST



Source link

You Missed

Mohsin Khan’s Mamta Child Factory Stalled as CBFC Withholds Clearance Over Surrogacy Theme
Top StoriesSep 18, 2025

मोहसिन खान की ममता चाइल्ड फैक्ट्री पर CBFC ने सुरोगती थीम के कारण मंजूरी देने से इनकार कर दिया

अगली हिंदी फिल्म ममता चाइल्ड फैक्ट्री, मोहसिन खान द्वारा निर्देशित, केंद्रीय फिल्म प्रमाणीकरण बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा कथित तौर…

Rahul Gandhi calls CEC 'protector of vote thieves'; says will present more proof soon
Top StoriesSep 18, 2025

राहुल गांधी ने CEC को ‘गड़बड़ी करने वालों का रक्षक’ कहा, कहा जल्द ही और सबूत पेश करेंगे

महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी मतदाताओं की बड़ी संख्या में हटाने की घटनाएं हुई हैं, जैसा…

Scroll to Top