भारत एक कृषि प्रधान देश है, और यहां की खेती में यूरिया का महत्वपूर्ण स्थान है. लेकिन रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल को लेकर सही जानकारी का अभाव किसानों की मुश्किलें बढ़ा रहा है. विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि रासायनिक उर्वरकों का उपयोग सोच-समझकर और सही मात्रा में करना बहुत जरूरी है. मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होने पर किसान डीएपी और यूरिया का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन गलत तरीके से उपयोग होने पर फसल को फायदा कम और आर्थिक नुकसान ज्यादा हो जाता है. यूरिया और डीएपी रासायनिक उर्वरक है, इसलिए इसके इस्तेमाल में हमेशा सतर्क रहना चाहिए.
बलिया के श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय के मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग के एचओडी प्रो. अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि यूरिया की उपयोग क्षमता केवल 40% होती है. यदि कोई किसान 1 क्विंटल यूरिया अपने खेत में डालता है, तो उसमें से 40 से 50 किलो ही पौधों तक पहुंच पाता है, बाकी मिट्टी में बेअसर हो जाता है या हवा में उड़ जाता है. अतः यूरिया एक बार में अधिक मात्रा में न डालकर कई बार में डालना सबसे प्रभावी और अच्छा तरीका है. उदाहरण के तौर पर अगर गेहूं की फसल में किसान 80 किलो यूरिया का उपयोग करता है, तो उसे चार बराबर हिस्सों में बांटकर डालना चाहिए.
प्रो. अशोक के अनुसार, पहली बार 25 दिन पर, दूसरी 50 दिन पर, तीसरी 75 दिन पर और चौथी बार 100 दिन के आसपास प्रयोग करें. इस पद्धति से किसान लगभग 50% तक यूरिया की बचत कर सकता है और फसल को पोषक तत्व भी समय पर मिलते रहेंगे. सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि यूरिया लेते समय उसकी गुणवत्ता भी जरूर चेक करें. नीम कोटेड यूरिया ही सबसे सुरक्षित माना जाता है. गोल, कड़े दानों वाला यूरिया चुनना बेहतर होता है, ताकि मिलावटी उर्वरक खरीदने का खतरा न रहे.
डीएपी का उपयोग किसान अधिक मात्रा में करते हैं, क्योंकि इसमें 18% नाइट्रोजन और 46% फास्फोरस होता है. लेकिन लगातार अधिक प्रयोग से मिट्टी में फास्फोरस की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है, जो मिट्टी, पानी और पौधों के लिए नुकसानदायक है. इसलिए डीएपी की जगह एनपीके उर्वरक का उपयोग करना अधिक फायदेमंद होता है. इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश तीनों तत्व संतुलित रूप में मिलते हैं. सल्फर का उपयोग भी हर फसल के लिए बेहद उपयोगी और गुणकारी है.

