Uttar Pradesh

अयोध्या राम मंदिर की धर्म ध्वजा पर उकेरा गया कोविदार का वृक्ष क्या है, क्यों इसे प्रतीक बनाया गया, जानिए

अयोध्या राम मंदिर की धर्म ध्वजा पर उकेरा गया कोविदार का वृक्ष क्या है, जानिए

कोविदार या कचनार का वृक्ष सिर्फ अपने सुंदर फूलों की वजह से कवियों की प्रिय उपमा रही है. लेकिन अयोध्या के राम मंदिर की धर्म ध्वजा पर इसे उकेरे जाने के बाद कोविदार के महत्व का जिक्र विस्तार से किया जा रहा है. फूलों से लद जाने वाला ये वृक्ष राजा राम के कुल की ध्वजा पर हमेशा से रहा है. इसका जिक्र पुराने भारतीय साहित्य की किताबों में खूब है. साथ ही कालिदास ने भी अपने ग्रंथों में इस सुंदर पेड़ का उल्लेख किया है. कचनार को अयुर्वेद की किताबों में बहुत ही औषधीय गुणों वाला बताया गया है.

अयोध्या राम मंदिर के ध्वज पर सूर्य के साथ कोविदार वृक्ष का चित्र भी उकेरा गया है. माना जाता है कि ये पेड़ राजा राम के रघुकुल के तेज, त्याग और तपस्या का ये प्रतीक है. बहुत सारे औषधीय गुणों वाला ये वृक्ष अवध वाले इलाके के लिए आम है. इसे कचनार, कचनाल या फिर कंछनार के तौर पर भी जाना जाता है. उत्तर भारत में हिमालय की तराई इलाके में ये बहुतायत में पाया जाता है. इसका जिक्र कालिदास की रचनाओं रघुवंश और मेघदूत में मिलता है. इसके अलावा पुरानी भारतीय चिकित्सा पद्धति की पुस्तकों में भी कोविदार का खूब उल्लेख मिलता है.

वाल्मिकी रामाण में लिखा है- उस महात्मा (भरत) के ध्वज पर कोविदार वृक्ष सुशोभित हो रहा है, मैं अपने विवेक और सुंदर हाथी से भी यही अनुमान करता हूं कि वे भरत ही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसका जिक्र अपने भाषण में मंगलवार को अयोध्या में किया. अयोध्या कांड में लिखा है –

विभाति कोविदारश्च ध्वजे तस्य महात्मनः।तर्कयामि मतिं चैव तं चैव वरवारणम् ॥

कविकुलगुरु कालिदास तो कचनार की सुंदरता पर इतने मुग्ध हैं कि उन्होंने मेघदूत में मेघ को सीधे कहा है कि तुम्हारे सखा के प्रांगण में कोविदार के फूल लदे हुए हैं. वे लिखते हैं –

कोविदारः कुसुमितस्तव सख्युरग्रे

कीरतार्जुनियम से लेकर आज तक के कवि कचनार की सुंदरता का अलग अलग तरीके से वर्णन करते हैं. लेकिन इसकी सुंदरता में मर्यादा भी होती है. वो मर्यादा है लोककल्याण की. पुरानी किताबों की माने तो इसकी छाल, पत्तियां और फूलों से रोगों का नाश होता है. इसका वैज्ञानिक नाम बौहिनिया वेरिगेटा है. इसका मूल भारत ही है. हालांकि नेपाल, म्यांमार और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ और देशों में ये पाया जाता है. आम तौर पर इसकी ऊंचाई 8 से 12 मीटर तक होती है. पतझड़ के काल में फरवरी और मार्च महीने में इसकी पत्तियां गिर जाती है और पूरा पेड़ सुंदर लाल, गुलाबी, बैगनी जैसे रंगों के फूल से लद जाता है. इसे अंग्रेजी में ऊंट के पैरों जैसा पेड़ भी कहा जाता है, क्योंकि ये पत्तियां दो खंडों में बंटी होती है.

चरक संहिता से लेकर सुश्रुत संहिता, भाव प्रकाश और राजनिघंटु में इसके औषधीय गुणों का जिक्र किया गया है. चरक संहिता में इसे कृमिनाशक और काषय रस के गुण वाला बताया गया है. सुश्रुत संहिता इसे गले की गिल्टियों से लेकर कोढ़ तक की बीमारी में उपयोगी बताया गया है. दूसरे कई ग्रंथों में इसे खासी में उपयोगी बताया गया है. कोविदार की छाल को पाचन के अलावा थायरॉयड जैसी बीमारियों को ठीक करने के लिए औषधि बनाने में इस्तेमाल किए जाने का भी जिक्र है. कई जगह कचनार के रायते के रूप में बहुत चाव से खाया जाता है. इसके अलावा कचनार की फलियों की सब्जियां भी बनाई जाती है. अपनी सुंदरता और औषधीय गुणों के कारण ये रघुकुल के ध्वज पर चिह्न के तौर पर उकेरा रहता था. इस बार राम मंदिर की धर्म ध्वजा पर कोविदार के अलावा रघुकुल के आदि पुरुष सूर्य और ओंकार चिह्न भी बनाया गया है.

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