नोएडा. बीते दिनों दिल्ली में हुए ब्लास्ट ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. इस धमाके में कई लोगों की जान चली गई और पूरा इलाका थर्रा उठा. इस बारे में लोकल 18 ने रिटायर्ड कर्नल देवेश सिंह से बात की. कर्नल देवेश सिंह गोला-बारूद, विस्फोटक, मिसाइल और आयुध विशेषज्ञ व बम-निष्क्रियकरण विशेषज्ञ (पूर्व एनएसजी) रहे हैं. उन्होंने बताया कि दिल्ली में हुए ब्लास्ट में करीब 10 से 15 किलो एक्सप्लोसिव मेटर को यूज किया गया होगा. ये एक्सप्लोसिव हाई एक्सप्लोसिव कैटेगिरी में आता है, लेकिन कॉमर्शियल एक्सप्लोसिव है. इसे अमोनियम नाइट्रेट में फ्यूल ऑयल मिक्स करके बनाया जाता है. फ्यूल ऑयल में कई बार हाई एनर्जेटिक मैटेरियल भी डाल देते हैं, जिससे ब्लास्ट की क्षमता कई गुना अधिक बढ़ जाती है.
तब तक नहीं होगा धमाका
कर्नल देवेश ने बताया इसका यूज यहां पहली बार नहीं हुआ. सबसे पहले हुआ था साबरमती एक्सप्रेस में, जहां उन्होंने ब्लास्ट इन्वेस्टीगेशन किया था. उसका बाद हुआ था पार्लियामेंट में, वहां भी यही एक्सप्लोसिव यूज हुआ था. अमोनियम नाइट्रेट में फ्यूल ऑयल के साथ सल्फर की क्वांटिटी थी. मुख्य पदार्थ पीईटीएन और उसके अलावा डेडिनेटर. ये सारी चीजें नहीं होगी तब तक ये अपने आपसे टिगर कभी नहीं होगा. ये ऐसा नहीं है कि अमोनियम नाइट्रेट में फ्यूल ऑयल मिक्स करके आग लगा देंगे और ये फट जाएगा. ये हाई कैटेगिरी में आता है और वो लो कैटेगिरी में आता है, जो हम दिवाली पर फोड़ते हैं.
क्या कंप्लीट था कार बम
कर्नल देवेश ने बताया कि कि ब्लास्ट के बाद कुछ वीडियो और क्लिप के आधार पर क्लियरिटी नहीं है कि ये प्रोपर IED था. आईडी बनाने के लिए चार पांच चीजें चाहिए होती हैं. पावर सोर्स, मैकेनिज्म, डेडिनेटर, एक्सप्लोसिव और फ्रैगमेंट्स, जो सबसे ज्यादा कैजुअलिटी करते हैं. कार बॉम्ब की एक खासियत होती है, जिसे हम VBIED बोलते हैं. इसके इंटर्नल पार्ट्स ही इतनी फ्रैगमेंट्स क्रिएट करते है, जिससे कैजुअलिटी बहुत ज्यादा होती है. अब इसमें साइट देखकर ये क्लियर नहीं हो रहा है कि छोटे छोटे छर्रे या कील के निशान होते हैं, वो नहीं दिखाई दिए. इसलिए ये कहना मुश्किल है कि ये पूरा का पूरा IED बन चुका था या नहीं.
इतने बनते बम
रिटायर्ड एसएम देवेश सिंह ने बताया कि आतंकियों का टारगेट लाल किला के आसपास ही था. जिस जगह रेड लाइट के पास ब्लास्ट हुआ, वो टारगेट प्लेस नहीं था. ये ज्यादा मुमकिन है कि उसी एरिया में ज्यादा भीड़भाड़, मंदिर, या फिर और कोई इम्पोर्टेंट प्लेस जहां इससे ज्यादा नुकसान हो सकता था, वो टारगेट एरिया हो. लेकिन वो इस एक्सप्लोसिव को कही छुपाने ले जा रहे थे, ये कहना ठीक नहीं है. अगर ऐसा होता तो वो कही और ही जाता, दिल्ली के अंदर एंट्री नहीं करता. फरीदाबाद में पकड़ा गया भारी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट को अगर ये टारगेट और प्लान के हिसाब से ब्लास्ट करने में सफल होते तो मल्टीपल प्लेस और मल्टीपल ब्लास्ट होते, जिससे सीरियस इंपैक्ट होता. अगर 10 या 12 से डिवाइड करते तो कितने सारे बॉम्ब बन जाते, इसका आप आकलन कर सकते हो.
कैमिकल कंपाउंड का हैंडल
देवेश सिंह ने कहा कि अल फलाह यूनिवर्सिटी के डॉक्टर को रिसर्च के लिए इतनी भारी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट तो नहीं चाहिए. हां लेकिन ये डॉक्टर थे. कैमिस्ट्री, बायलॉजी पढ़ाते हैं. इनके पास किसी भी केमिकल कंपाउंड को कैसे हैंडल करना है, बेसिक नॉलेज होती है. कोई भी जांच एजेंसी के पास कोई इन्फॉर्मेशन गलत नहीं होती, ये भी बहुत पहले रही होगी लेकिन एक्जीक्यूशन करने का सही समय, अब मिला होगा.
पार्लियामेंट ब्लास्ट से थोड़ा अलग
देवेश सिंह ने एक्स आर्मी चीफ विपिन रावत का वो बयान दोहराते हुए कहा कि हम वाकई 2.5 फ्रंट वार से लड़ रहे हैं. मेरे अनुमान से अगर ये 10 ये 12 किलो एक्सप्लोसिव था और ये पूरा का पूरा कंपोजिशन था तो फिर ये बिल्कुल परफेक्ट नहीं था. परफेक्ट होता तो क्रेटर भी होता और बहुत चीजें होंती. साबरमती ब्लास्ट और पार्लियामेंट धमाके में कॉन्कोक्शन में थोड़ी कमी रही. साबरमती में थोड़ा डिफरेंट कॉन्कोक्शन था और पार्लियामेंट में थोड़ा अलग. इसको परफेक्ट तरीके से मिलाया जाता है. वो मिलिट्री एक्सपर्ट नहीं हैं. सो वे परफेक्ट तरीके से एक्जेक्ट कंपोजिशन कैसे करना है, ये नहीं जानते. पार्लियामेंट में जो बॉम्ब डिफ्यूज किया, उसमें 32 किलो अमोनियम नाइट्रेट था. उसमें PETN भी था. डिटोनेटर भी था. साबरमती में 4 से 5 किलो अमोनियम नाइट्रेट प्रयोग किया गया था.

