रामपुर के सुरेशपाल ने सिर्फ 25 भेड़ों से शुरू किया काम और आज उनके पास 70 से ज्यादा भेड़ें हैं
रामपुर: आज हम आपको रामपुर के एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने भेड़ पालन को न केवल अपना पेशा बनाया बल्कि इसे अच्छी आमदनी का जरिया भी बनाया है. सुरेशपाल पिछले 35 सालों से भेड़ पालन कर रहे हैं और उन्होंने यह साबित किया है कि अगर मेहनत और सही तरीका अपनाया जाए तो भेड़ पालन से घर का खर्च आसानी से चलाया जा सकता है और अच्छा मुनाफा भी कमाया जा सकता है।
देसी नस्ल की भेड़ों की खासियत
सुरेशपाल बताते हैं कि वे केवल देसी नस्ल की भेड़ों का पालन करते हैं. इन भेड़ों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये सर्दी में कम बीमार पड़ती हैं और ठंडे इलाकों में भी शरीर तापमान के अनुसार खुद को ढाल लेता है. यही कारण है कि देसी नस्ल की भेड़ें टिकाऊ और कम खर्चीली मानी जाती हैं. इनके रख-रखाव में ज्यादा दवा या विशेष चारे की जरूरत नहीं होती, जिससे शुरुआती खर्च भी कम आता है।
भेड़ पालन में मुनाफा
भेड़ पालन की शुरुआत आमतौर पर 3 से 4 महीने के मेमनों से की जाती है. जब भेड़ पूरी तरह विकसित हो जाती है तो साल में एक बार बच्चे देती है. गर्भावस्था की अवधि लगभग 5 महीने होती है और छह महीने के भीतर बच्चे तैयार हो जाते हैं. इन्हें बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. सुरेशपाल बताते हैं कि भेड़ों को सुबह और शाम चराने के लिए खुले मैदान या खेतों में ले जाया जाता है. उनका प्रमुख चारा हरी घास, भूसा, चोकर और दाना होता है. सर्दी में भेड़ों को सूखे और गर्म स्थान पर रखना जरूरी है ताकि उन्हें सर्दी-जुकाम न हो.
भेड़ पालन में शुरुआती निवेश
सुरेशपाल बताते हैं कि यदि कोई व्यक्ति 20 से 25 भेड़ों से शुरुआत करता है तो शुरुआती खर्च लगभग 1 से 1.5 लाख रुपये आता है. छह महीने के अंदर जब बच्चे तैयार हो जाते हैं, तो प्रत्येक भेड़ का बच्चा 3 से 4 हजार रुपये में बिक जाता है. इसके अलावा ऊन की बिक्री से भी सालाना हजारों रुपये की आमदनी होती है. सुरेशपाल अपने भेड़ों को दिल्ली, बरेली और आसपास के शहरों में बेचने जाते हैं. उनका कहना है कि मेहनत और सही प्रबंधन से भेड़ पालन सिर्फ रोजी-रोटी का जरिया नहीं, बल्कि स्थायी और लाभकारी व्यवसाय बन सकता है.

