बरसीम दुधारू पशुओं के लिए पौष्टिक और रसीला चारा होता है. इसके पौधे में शुष्क पदार्थ की पाचनशीलता 70 फीसदी और 21 फीसदी तक प्रोटीन होती है. यही वजह है कि इसे खिलाना पशु के स्वास्थ्य के लिए काफी बेहतर माना जाता है. साथ ही इससे गाय और भैंस के दूध में बढ़ोतरी होती है. इस वजह से बरसीम चारे की मांग मार्केट में बनी रहती है. उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में इन दिनों युवा बड़ी संख्या में पशुपालन और डेरी फार्मिंग की ओर रुख कर रहे हैं. ऐसे में पशुपालन के साथ-साथ दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान अब आधुनिक तरीकों को अपनाने लगे हैं. सर्दियों के मौसम में दुधारू पशुओं की देखभाल और सही पोषण सबसे अहम माना जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस मौसम में पशुओं को पर्याप्त हरा चारा और संतुलित आहार दिया जाए, तो दूध उत्पादन में किसी भी तरह की कमी नहीं आती. ऐसे में बरसीम किसानों के लिए वरदान हो सकता है.
बरसीम की बुवाई का सबसे अच्छा समय अक्टूबर के पहले सप्ताह से लेकर नवंबर के मध्य तक है। इस समय बुवाई करने से अच्छी उपज मिलती है, क्योंकि यह तापमान के लिए उपयुक्त होता है। देर से बुवाई करने पर उपज कम हो सकती है, जबकि बहुत जल्दी बुवाई करने पर अधिक तापमान से अंकुरण और जमाव कम हो सकता है. बरसीम को ‘चारे का राजा’ कहा जाता है, क्योंकि यह दुधारू पशुओं के लिए सबसे पौष्टिक और पसंदीदा हरा चारा है. बरसीम में उच्च मात्रा में प्रोटीन, कैल्शियम और मिनरल्स पाए जाते हैं, जो पशुओं के स्वास्थ्य और दूध उत्पादन दोनों के लिए जरूरी हैं. बरसीम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे एक बार बोने के बाद किसान लगभग 5 से 7 बार तक इसकी कटाई कर सकते हैं. इसकी बुवाई के लगभग 30 दिनों बाद पहली कटाई की जा सकती है, इसके बाद हर 25 से 30 दिन के अंतराल पर दोबारा चारा तैयार हो जाता है. यह फसल न केवल कम मेहनत मांगती है बल्कि पानी और उर्वरक की भी कम आवश्यकता होती है.
लखीमपुर खीरी के किसान दरसराम बताते हैं कि हमारे पास कई दुधारू जानवर हैं. हम हर साल सर्दियों में बरसीम की बुवाई करते हैं. इससे हमारे पशुओं को पर्याप्त हरा चारा मिलता है और दूध की कमी नहीं होती. बरसीम खाने से पशु स्वस्थ रहते हैं और दूध में भी बढ़ोतरी होती है. बरसीम की खेती के अन्य लाभ भी हैं. यह न केवल पशुओं के लिए उपयोगी है, बल्कि खेत की मिट्टी के लिए भी फायदेमंद होती है. यह फसल मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है, जिससे खेत की उर्वरक क्षमता में सुधार होता है. बरसीम की जड़ों में रहने वाले राइजोबियम बैक्टीरिया मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, जिससे अगली फसलें भी अच्छी होती हैं.
बरसीम की बुवाई का सही समय विशेषज्ञों का कहना है कि बरसीम की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच करना सबसे उपयुक्त रहता है. इसके लिए हल्की दोमट मिट्टी और पर्याप्त सिंचाई वाली जमीन बेहतर होती है. बीज की बुवाई करते समय यह ध्यान देना जरूरी है कि खेत की जुताई अच्छी तरह हो और नमी पर्याप्त बनी रहे.

