पीलीभीत में कार्तिक पूर्णिमा स्नान के पावन अवसर पर जहां श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे, वहीं देवहा नदी में 9 नालों का गंदा पानी मिल जाने से हालात चिंताजनक हो गए। जहां एक तरफ श्रद्धालु दूषित जल में स्नान करने को मजबूर दिखे वहीं अब प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल उठने लगे हैं।
पीलीभीत में हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का दिन बेहद शुभ माना जाता है। सनातन धर्म की मान्यता है कि इस दिन खुद देवता पृथ्वी पर आते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत शहर में हज़ारों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगायी। श्रद्धालुओं के लिहाज से शहर की देवहा नदी सबसे प्रमुख है। मगर अफसोस है कि तमाम दावों के बावजूद आज भी श्रद्धालुओं को जानबूझ कर दूषित की जा रही देवहा नदी में स्नान करना पड़ा।
गौरतलब है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का ख़ास महत्व होता है। ऐसे लोग जो गंगा नदी में स्नान को नहीं जा सकते वे अपने आसपास की नदियों में ही स्नान और पूजन करते हैं। अगर पीलीभीत जिले की बात करे तो शारदा, देवहा और गोमती नदी सबसे प्रमुख हैं। शहर की बात करे तो अधिकांश लोग अपने आध्यात्मिक कार्यों के लिए देवहा नदी पर निर्भर हैं।
देवहा नदी में 9 नालों का पानीआज कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर हजारों श्रद्धालुओं ने देवहा स्थित ब्रह्मचारी घाट पर आस्था की डुबकी लगाई। मगर जिस ब्रह्मचारी घाट पर लोग स्नान करते हैं, वहीं पर खकरा नदी देवहा में मिलती है। देवहा में मिलने से पहले खकरा नदी में शहर के तीन बड़े नाले गिरते हैं। इसके अलावा, देवहा नदी में शहर के कुल 9 नालों और एक चीनी मिल का प्रदूषित पानी छोड़ा जाता है। पीलीभीत से बहकर देवहा नदी शाहजहांपुर होते हुए फर्रुखाबाद में गंगा में मिल जाती है। लेकिन इसके बावजूद, शहर की गंदगी और फैक्ट्रियों का केमिकल युक्त पानी बेरोकटोक देवहा में मिलाया जा रहा है।
हवा में उड़ा दिया एनजीटी का निर्देशशहर की पौराणिक देवहा नदी में बढ़ते प्रदूषण का मुद्दा कई वर्षों से उठाया जा रहा है। देवहा में दूषित पानी मिलाए जाने का मामला सामाजिक कार्यकर्ता शिवम कश्यप ने एनजीटी और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष रखा था। इस पर पालिका को तत्काल इसका स्थाई हल निकालने के निर्देश भी दिए गए थे, लेकिन लापरवाही के चलते इन निर्देशों पर कभी अमल नहीं किया गया।
अब पीलीभीत के प्रशासन को देवहा नदी को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे। यदि नहीं तो यहां के श्रद्धालुओं को अपनी आस्था की डुबकी लगाने के लिए दूसरी नदी का इंतजार करना पड़ेगा।

