क्या इस्लाम में महिलाओं का कब्रिस्तान में जाना जायज़ है या नहीं?
इस्लाम में कब्रिस्तान जाने को इबरत यानी नसीहत का ज़रिया बताया गया है। देखा गया है कि कुछ जगहों पर मुस्लिम महिलाएं कब्रिस्तान में जाती हैं, तो वहीं कुछ मुस्लिम महिलाएं कब्रिस्तान में जाने से परहेज़ करती हैं। लेकिन अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या इस्लाम में औरतों का कब्रिस्तान जाना जायज़ है या नहीं।
इस बारे में सही जानकारी हासिल करने के लिए हमने अलीगढ़ के मुस्लिम धर्मगुरु चीफ मुफ्ती मौलाना चौधरी इफराहीम हुसैन से खास बातचीत की। उन्होंने बताया कि इस्लाम में औरत और मर्द दोनों के लिए कब्रिस्तान जाने की इजाजत है। शुरुआत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कब्रिस्तान जाने से मना किया था, लेकिन बाद में इल्म आने पर इसकी अनुमति दी गई।
मौलाना साहब ने कहा कि औरतों के लिए कब्रिस्तान जाना कुछ शर्तों के साथ जायज़ है। अगर कोई औरत शरई लिबास में तहज़ीब और अदब के साथ, इबरत (नसीहत) हासिल करने या दुआ करने की नियत से जाती है, तो इसमें कोई मनाही नहीं है। लेकिन अगर वहां जाकर रोना-धोना, मातम, शोर-शराबा या किसी तरह की हराम या शिर्क से जुड़ी हरकत की जाए, तो यह नाजायज़ है।
उन्होंने कहा कि औरतों को कब्रिस्तान जाते समय अपने लिबास और आमाल का ख़ास ख्याल रखना चाहिए। नियत साफ़ होनी चाहिए। सिर्फ इबादत और इबरत के लिए जाना चाहिए, न कि किसी दिखावे या ग़लत मकसद से। इस्लाम में जायज़ तरीके और शरई अदब के साथ औरतों का कब्रिस्तान जाना मना नहीं है।
लेकिन अगर कोई मुस्लिम महिला इन सब बातों का ख्याल ना रखते हुए कब्रिस्तान में दाखिल होती है, तो वह इस्लाम की नजर में गुनहगार होगी। इसीलिए अगर किसी मुस्लिम महिला को कब्रिस्तान में जाना है, तो शरई तौर पर इन बातों का खास ख्याल रखना होगा।


 
                 
                 
                