Uttar Pradesh

पत्ता गोभी की खेती के टिप्स : दो प्रमुख किस्में जो उत्पादन में नंबर एक हैं, पलक झपकते ही तैयार!

पत्ता गोभी की खेती: सर्दियों के मौसम में पत्ता गोभी की खेती शुरू हो जाती है, जो एक कम लागत में तैयार होने वाली फसल है। किसान भाई अगर उन्नत किस्मों का चयन करें तो बेहद कम समय में मालामाल हो सकते हैं। पत्ता गोभी की फसल में 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार आराम से हो जाती है, लेकिन इसके लिए गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करना आवश्यक है।

पत्ता गोभी एक ऐसी सब्जी है, जिसकी मांग सालभर बनी रहती है। इसका इस्तेमाल सब्जियों के लिए और सलाद के लिए तो होता ही है, इसके अलावा बाजार में फास्ट फूड में भी पत्ता गोभी का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है, जिसकी वजह से लगातार इसकी मांग बाजार में बनी रहती है। अगर किसान इस समय पत्ता गोभी की रोपाई कर दें तो अच्छी कमाई कर सकते हैं।

पत्ता गोभी की फसल बेहद कम लागत में तैयार हो जाती है और किसानों को बंपर उत्पादन भी मिलता है। शाहजहांपुर के जिला उद्यान अधिकारी डॉ. पुनीत कुमार पाठक बताते हैं कि पत्ता गोभी एक ऐसी पत्तेदार सब्जी है जो कम लागत में किसान उगा सकते हैं। इसकी फसल में कीट और रोग भी कम आते हैं, बस कुछ बातों का ध्यान रखना होता है।

डॉ. पुनीत के अनुसार, पत्ता गोभी की रोपाई करते समय उन्नत किस्म का चयन करें। सही किस्म का चयन करने से किसान अपनी लागत को कम और आमदनी को बढ़ा सकते हैं। किसान भाई पूसा अगेती और पूसा ड्रम हेड किस्मों का चुनाव कर सकते हैं।

पूसा अगेती की किस्म 380 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक किसानों को उत्पादन देती है। यह किस्म करीब 70 से 80 दिनों में हार्वेस्टिंग के लिए तैयार हो जाती है। पूसा ड्रम हेड किस्म भी अच्छा उत्पादन देती है। इसका साइज काफी बड़ा होता है। यह 350 से 360 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है और यह किस्म 80 दिनों में कटिंग के लिए तैयार हो जाती है।

पत्ता गोभी की खेती के लिए किसानों को सबसे पहले ऐसी जमीन का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पानी रुकने की समस्या न हो, यानी जल निकासी की व्यवस्था एकदम दुरुस्त हो। याद रखें, खेत में बारिश का पानी जमा हुआ तो आपकी फसल बर्बाद हो सकती है। खेत की गहरी जुताई करें और उसके बाद पाटा चलाकर मिट्टी को एकदम भुरभुरा बना लें। खेत की अंतिम जुताई के दौरान, किसान गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करना न भूलें। इससे मिट्टी की सेहत सुधरेगी और आपकी रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता भी काफी हद तक कम हो जाएगी।

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