बांके बिहारी मंदिर के खजाने की खोज लगातार दो दिन हुई, लेकिन कोई बेशकीमती ज्वेलरी या खजाने जैसा कुछ नहीं मिला. केवल कुछ पुराने पीतल और कांसे के बर्तन और खाली बक्सा ही हाथ लगा. अब सवाल उठ रहा है कि आखिर खजाना गया कहां? आइए बताते हैं असली सच.
भगवान बांके बिहारी का बेशकीमती खजाना खुलने के बाद सभी लोग उसी की चर्चा कर रहे हैं. कहा जाता था कि इस तोषखाने में बेशकीमती खजाना रखा हुआ है. मगर, जब बांके बिहारी मंदिर का तोषखाना खोला गया तो सवाल उठ गया कि आखिर बेशकीमती खजाना कहां गया. आइए जानते हैं उस खजाने की हकीकत.
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में बना हुआ तोषखाना अपने अंदर रहस्यों को समेटे हुए था. ये खुलने से पूर्व यह दावा किया जा रहा था कि आभूषणों से भरा हुआ है. इस तोषखाने में बेशकीमती आभूषणों के साथ-साथ हीरा, पन्ना और सोना चांदी की भरमार है. ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के खजाने को जब 54 वर्ष बाद खोला गया तो लोगों ने जो देखा वह सब देखकर दंग रह गए.
इतिहासकारों का जो दावा था, उस दावे में जो बातें बताई गई थीं, उसके विपरीत खजाने में सामान मिला. पीतल के बर्तनों के अलावा, एक सोने की छड़ी और कुछ चांदी की छड़ी मिलीं. मगर, सालों साल से जो दावा किया जा रहा था, वह दावा बिल्कुल खोखला साबित हुआ. आखिर भगवान का कीमती खजाना कहां गया. यह लोगों के मन में आज भी सवाल उठ रहा है.
स्थानीय नागरिक नवीन गौतम ने बताया कि 1970 में जो चोरियां हुई थीं, उसमें मंदिर के दो गोस्वामियों का हाथ था. उन्होंने उस बेशकीमती खजाने को चोरी दिखा दिया. मंदिर का खजाना तो 1970 में ही खाली हो गया था. यह सभी को पता है कि भगवान बांके बिहारी मंदिर में जो गोस्वामी थे, वह अपराधिक प्रवृत्ति के थे. उनमें से एक गोस्वामी की अटला चुंगी पर बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. हत्या भी खजाने के चक्कर में हुई थी.
बिहारी जी के खजाने में दो बार हुई थी चोरी. वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर का खजाना भले ही 54 वर्ष बाद खुला हो, लेकिन ठाकुर जी के इस खजाने से चोर बेशकीमती आभूषण खजाना खुलने से पहले ही चुरा ले गए. मंदिर के खजाने में हुई चोरी की जानकारी मंदिर के गोस्वामी ने दी. इतिहासकार और मंदिर के पुजारी प्रहलाद गोस्वामी ने बताया कि मंदिर के निर्माण के समय इसमें पूजित करके खजाना स्थापित किया गया था. उसके बाद ठाकुरजी पर चढ़ाए गए पन्ना निर्मित मयूराकृति हार सहित अनेक आभूषण, चांदी, सोने के सिक्के, भरतपुर, करौली, ग्वालियर आदि रियासतों द्वारा प्रदत्त दान-सेवा पत्र भी रखे गए थे.
उन्होंने कहा कि श्रीबिहारीजी के दाहिने हाथ की ओर बने दरवाजे से करीब दर्जनभर सीढ़ी उतरने के बाद बाएं ओर की तरफ ठाकुरजी के सिंहासन के एकदम बीचोंबीच तोषखाना स्थापित है. ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1926 और 1936 में दो बार चोरी भी हुई थी. इन चोरियों की घटनाओं की रिपोर्ट के चलते 4 लोगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी की गई थी. चोरी के बाद गोस्वामी समाज ने तहखाने का मुख्य द्वार बंद करके सामान डालने के लिए एक छोटा सा मोखा (मुहाना) बना दिया था. वर्ष 1971 अदालत के आदेश पर खजाने के दरवाजे के ताले पर सील लगा दी गई, जो आज तक यथावत है. वर्ष 2002 में मंदिर के तत्कालीन रिसीवर वीरेंद कुमार त्यागी को कई सेवायतों ने हस्ताक्षरित ज्ञापन देकर तोषाखाना खोलने का आग्रह किया था. वर्ष 2004 में मंदिर प्रशासन ने गोस्वामी गणों को निवेदन पर पुनः तोषाखाना खोलने के कानूनी प्रयास किए थे, लेकिन वह भी असफल रहे.