Uttar Pradesh

कानपुर समाचार : अंग्रेज अधिकारी यहां घोड़े पर बैठकर खरीदने आते थे हाथी, खाते भी थे, खिलाते भी…दिवाली में फिर सजी अनोखी बाजार

कानपुर का हुलागंज बाजार: ढाई सौ साल पुरानी मिठास जो आज भी अपनी ओर खींचती है

कानपुर का हुलागंज बाजार, जो ढाई सौ साल से भी ज्यादा पुराना है, दिवाली के त्योहार के समय अपनी रौनक लौट आता है. यहां आकर लोग अपने बचपन की यादों में खो जाते हैं और इन चीनी के खिलौनों को देखकर अपने बच्चों को भी अपनी ओर खींच लेते हैं.

हुलागंज बाजार की पहचान है यहां मिलने वाले चीनी के खिलौने, जो दिखने में जितने सुंदर हैं, उतनी ही मिठास लिए होते हैं. हाथी, घोड़ा, चिड़िया, मटकी और पालकी जैसी आकृतियों में बनने वाले ये खिलौने आज भी बच्चों और बड़ों दोनों को अपनी ओर खींच लेते हैं. दुकानदारों का कहना है कि इन खिलौनों को देखकर लोग अपने बचपन की यादों में खो जाते हैं.

अंग्रेज पुराने दीवाने दुकानदार साजन लाल दीक्षित बताते हैं कि अंग्रेजों के जमाने में भी हुलागंज का नाम दूर-दूर तक मशहूर था. अंग्रेज अधिकारी अपनी शाही सवारी से यहां पहुंचते थे और शक्कर (चीनी) से बने खिलौनों की खरीदारी करते थे. इन खिलौनों की मिठास और सुंदरता से वे इतने प्रभावित थे कि अपने साथ इन्हें तोहफे के रूप में भी ले जाते थे. उस वक्त यह इलाका व्हीलरगंज के नाम से जाना जाता था, क्योंकि यहां ब्रिटिश अफसर सर ह्यू व्हीलर की छावनी हुआ करती थी. बाद में भारतीय सेनापति हुलास सिंह के नाम पर इसका नाम हुलागंज पड़ा और तभी से यह बाजार अपनी पहचान बनाए हुए है.

दिवाली से पहले बढ़ी रौनक

दिवाली से पहले करवा चौथ के बाद से ही यहां लइया, गट्टा, खिल और चूरा की बिक्री जोरों पर होती है. दुकानदार बताते हैं कि गोरखपुर, बांदा, बस्ती, आगरा और झांसी समेत मध्य प्रदेश और बिहार से भी व्यापारी खरीदारी करने पहुंचते हैं. इस बार थोक रेट 55 रुपए किलो और फुटकर 70 रुपए किलो के बीच है. बाजार में इस साल बीते सालों की तुलना में अधिक रौनक है और कारोबारियों को उम्मीद है कि इस दिवाली पर बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचेगी.

खेलते भी, खाते भी

हुलागंज में खिलौनों को तैयार करने की प्रक्रिया आज भी पारंपरिक तरीके से होती है. लकड़ी के सांचों में शक्कर का गरम तरल घोल भरा जाता है और ठंडा होने पर इससे हाथी, घोड़ा, सुराही, मटकी जैसी आकृतियां निकलती हैं. धीमी आंच पर तैयार किए गए ये खिलौने जब जमकर सूख जाते हैं, तो दूर से ही चमकते दिखाई देते हैं. बच्चे इन्हें खिलौनों की तरह खेलते भी हैं और मिठाई की तरह खाते भी हैं.

आज भी कायम

आज इस बाजार में 200 से अधिक कारखाने और दुकानें हैं, जहां सालभर खिलौनों और बताशों का निर्माण होता है. 150 से अधिक थोक और फुटकर व्यापारी यहां कारोबार करते हैं. त्यौहारों के मौसम में तो यहां इतनी भीड़ होती है कि गलियां तक सजी रहती हैं. इतिहास समिति के अनूप शुक्ल बताते हैं कि हुलागंज न सिर्फ कानपुर की पहचान है, बल्कि यह उस मिठास की निशानी है जिसे अंग्रेज भी भूल नहीं पाए. हुलागंज बाजार सिर्फ खरीदारी की जगह नहीं, बल्कि कानपुर की उस सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है जो अंग्रेजी दौर से लेकर आज तक अपनी मिठास से लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरती आ रही है.

You Missed

‘Naxalism a sin,’ Modi says day not far when India will be freed from Red terror
Top StoriesOct 18, 2025

नक्सलवाद एक पाप है: मोदी, लाल आतंक से मुक्ति का दिन जल्द ही आ जाएगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए, पिछले यूपीए सरकारों पर हमला किया, जिन्होंने “प्रतिकूलता…

Scroll to Top