सुल्तानपुर: बूढ़ी हड्डियां, जवान जज़्बा… 65 साल की उम्र में खींच रहे रिक्शा
सुल्तानपुर के रहने वाले 65 वर्षीय मांगू निषाद ने अपनी जिंदगी के 27 साल मुंबई में नौकरी करते हुए बिताए. लेकिन, आज पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्हें वापस अपने गांव लौटना पड़ा है, जहां वे रोज़ाना सुबह 6 बजे से लेकर देर शाम तक ठेला चलाकर माल ढोते हैं।
मांगू निषाद के परिवार में तीन बेटियां और दो बेटे हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। वह रोज करीब 300 से 400 रुपए तक की कमाई कर लेते हैं, लेकिन आज की महंगाई के दौर में यह रकम जीवन यापन के लिए बिल्कुल नाकाफी है।
मांगू ने बताया कि सुल्तानपुर बस स्टैंड से लेकर पंचो पिरान तक-जहां भी जगह मिल जाती है, वहीं पर अपना रिक्शा खड़ा कर लेते हैं और उसी पर सो जाते हैं। दिनभर की थकावट इतनी अधिक होती है कि मच्छरों के काटने या किसी कीट के डसने का भी असर महसूस नहीं होता। थकान के आगे सब फीका लगता है।
मांगू निषाद की कहानी एक सच्ची और मार्मिक कहानी है, जो दिखाती है कि दो वक्त की रोटी और जीवन की मजबूरी लोगों को किस हद तक संघर्ष करने पर मजबूर कर देती है।