इस्लाम में शिक्षा का बहुत उच्च स्थान है और इसे मर्द-औरत दोनों पर फर्ज माना गया है. शिक्षा हासिल करना न सिर्फ किसी भी इंसान के लिए जरूरी है, बल्कि समाज के विकास और सही मार्गदर्शन के लिए भी ज़रूरी माना जाता है. अलीगढ़ में एक सवाल अक्सर मन आता है कि इस्लाम में मर्द और औरत को साथ पढ़ने की इज़ाज़त है? इसी सवाल का जवाब जानने के लिए हमने अलीगढ़ के मौलाना से खास बातचीत की.
मौलाना इफराहीम हुसैन ने बताया कि इस्लाम में एजुकेशन का बहुत महत्व है. मर्द और औरत दोनों पर ही इल्म सीखना फर्ज है. को-एजुकेशन यानी मर्द और औरत का साथ में पढ़ाई करना भी पूरी तरह जायज है और इसमें कोई हर्ज नहीं है. असली मकसद इल्म हासिल करना है और किसी भी वजह से किसी को ज्ञान से वंचित नहीं किया जा सकता. मौलाना ने कहा कि कई कोर्सेस ऐसे होते हैं जिनमें मर्द और औरत दोनों का हिस्सा होना प्रैक्टिकली जरूरी होता है. इस तरह के प्रैक्टिकल में भाग लेने के लिए दोनों का साथ होना आवश्यक है. इसलिए जो भी ज्ञान सीखने या सिखाने का अवसर मिलता है उसे सीखना चाहिए.
मौलाना इफराहीम हुसैन ने कहा कि इस्लाम में को-एजुकेशन पूरी तरह से जायज है. मर्द और औरत दोनों एक साथ पढ़ सकते हैं और इसमें कोई नुकसान या गलत बात नहीं है. असल में इल्म का हासिल करना सबसे महत्वपूर्ण है. और इसके रास्ते में किसी प्रकार की रोक-टोक नहीं है. इसलिए इसे सीधी और सरल भाषा मे कहा जा सकता है कि इस्लाम मे को-एजुकेशन की मनाही नहीं है. बल्कि इसको इस्लाम मे जायज ठहराया गया है.