Uttar Pradesh

धान की फसल पर इस रोग का बढ़ा खतरा, जरा सी लापरवाही कर देगी तबाह, जानें बचाव के तरीके

धान पर इस रोग का बढ़ा खतरा, जरा सी लापरवाही कर देगी तबाह, जानें बचाव के तरीके

रायबरेली, उत्तर प्रदेश. धान की फसल में बाली आने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. कुछ अगेती धान की किस्मों में बालियां निकल भी आई हैं. लेकिन मौसम में हो रहे परिवर्तन के चलते धान की फसल पर कई तरह के रोग और कीट लगने का खतरा भी बढ़ गया है. इससे किसानों की चिंताएं भी बढ़ गई हैं. धान की बाली में लगने वाले रोगों में कंडुआ भी शामिल है, जिसे हल्दी रोग या आम बोलचाल की भाषा में भुंड रोग के नाम से भी जाना जाता है. यह रोग लगने पर धान की बालियों में दानों की जगह हरे, पीले या नारंगी रंग के फफूंदी जैसे गोल बन जाते हैं, जो बाद में काले पड़ जाते हैं और धान की बाली के अंदर के दाने को पूरी तरह सुखाकर नष्ट कर देते हैं.

कंडुआ रोग अक्टूबर से नवंबर तक धान की अधिक उपज देने वाली प्रजातियों में लगता है. जिस खेत में यूरिया का प्रयोग अधिक होता है और वातावरण में काफी नमी होती है, उस खेत में यह रोग प्रमुखता से आता है. ऐसे में जरूरी है कि किसान समय रहते अपनी धान की फसल का इस रोग से बचाव कर लें. इससे उन्हें किसी भी प्रकार के नुकसान का सामना न करना पड़े.

कृषि विशेषज्ञ से जानते हैं कि इस रोग के लक्षण और बचाव के क्या उपाय हैं? रायबरेली जिले के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा (बीएससी एग्रीकल्चर डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद) ने बताया कि कंडुआ (फाल्स स्मट) अक्टूबर से नवंबर तक धान की अधिक उपज देने वाली प्रजातियों में आता है. जिस खेत में यूरिया का प्रयोग अधिक होता है और वातावरण में काफी नमी होती है, उस खेत में यह रोग प्रमुखता से आता है.

धान की बालियों के निकलने पर इस रोग का लक्षण दिखाई देने लगता है. यह एक फफूंद जनित रोग है, जो हवा के माध्यम से फैलता है. कंडुआ रोग लगने पर धान की बालियों में दानों की जगह पीले या नारंगी रंग के फफूंदी जैसे गोल बन जाते हैं, जो बाद में काले पड़ जाते हैं और दाने पूरी तरह सूख जाते हैं.

शिव शंकर वर्मा ने बताया कि कंडुआ रोग से फसल का बचाव करने के लिए नमक के घोल में धान के बीजों को उपचारित करें. बीज को साफ कर सुखाने के बाद नर्सरी डालने के समय कार्बेन्डाजिम-50 डब्ल्यूपी दो ग्राम या दो ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें और यूरिया अधिक न डालें. सबसे जरूरी है कि कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर उचित कीटनाशक का छिड़काव करें.

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