बांदा के इस पहाड़ में मां विंध्यवासिनी का दरबार, श्राप से पर्वत हो गया सफेद
बांदा. नवरात्रि का पर्व चल रहा है, जो देशभर में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इसी कड़ी में आज हम आपको बुंदेलखंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो ऊंची पहाड़ियों में बना हुआ है. इसे लोग मां विंध्यवासिनी के नाम से जानते हैं. नवरात्रि के दिनों में यहां भक्तों की अच्छी खासी भीड़ भी देखने को मिलती है. बांदा जिले में स्थित द्वापर युगीन प्राचीन मंदिर मां विंध्यवासिनी का दरबार भी काफी पुराना है. यह स्थान बांदा के गिरवा थाना क्षेत्र के शेरपुर गांव में स्थित खत्री पहाड़ पर है. यहां विराजमान मां विंध्यवासिनी को देश के प्रमुख 108 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. मान्यता है कि नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मां विंध्यवासिनी मिर्जापुर से आकर बांदा के इसी खत्री पर्वत पर विराजमान होती हैं. इसी आस्था के साथ भक्त यहां पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं.
बच्ची का भार सह नहीं पाया पहाड़
मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस पर्वत का पौराणिक संबंध द्वापर युग के राजा कंस, नंद बाबा और माता देवकी से जुड़ा बताया जाता है. धार्मिक ग्रंथों और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जब कंस ने कारागार में जन्मी कन्या रूपी देवी को पत्थर पर पटकने की कोशिश की थी, तो वह देवी आकाश में विलीन हो गईं. कहा जाता है कि वही देवी बांदा के इस खत्री पर्वत पर आईं, लेकिन पर्वत उनके भार को सहन नहीं कर पाया. इस पर देवी ने क्रोधित होकर पर्वत को कोढ़ का श्राप दिया, जिससे इसका रंग सफेद हो गया. इसी कारण इस पर्वत को आज खत्री पहाड़ के नाम से जाना जाता है.
माफी मांगी, मिला वरदान
पर्वत ने देवी से क्षमा याचना की, तब देवी ने आशीर्वाद दिया कि वह हर वर्ष नवरात्र की अष्टमी को यहां विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगी. तभी से यहां हर वर्ष नवरात्रि पर भव्य धार्मिक मेला और श्रद्धा समागम आयोजित किया जाता है. दूर दराज से दर्शन करने पहुंचे भक्तों का कहना है कि वह हर साल इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं. यहां जो भी मुराद मांगें, वह पूरी होती है. इसी आस्था और श्रद्धा के साथ लोग हर साल माता रानी के दर्शन के लिए आते हैं.

