Uttar Pradesh

चंदौली के किसानों के लिए यह जानकारी बहुत उपयोगी है कि कैसे उन्हें पीली बीमारी जैसी बीमारियों से निपटना है।

चंदौली में किसानों को फसलों के रोगों से बचाव के लिए दी गई टिप्स

चंदौली जिले की कृषि रक्षा अधिकारी स्नेह प्रभा ने किसानों को फसलों में लगने वाले रोगों से बचाने के लिए कई तरह की टिप्स दी हैं, जिससे किसान अपनी फसलों को नुकसान से बचा सकते हैं और अधिक से अधिक पैदावार मिल सकती है. उन्होंने किसानों से अपील की है कि वे इन उपायों को अपनाकर अपनी धान की फसल को सुरक्षित रखें और किसी भी समस्या के लिए कृषि विभाग से संपर्क करें.

जीवाणु झुलसा रोग (लक्षण और प्रबंधन)

यह रोग धान की फसल में एक गंभीर समस्या है. इसके मुख्य लक्षणों में पत्तियों पर लहरदार, पीले-सफेद या सुनहरे पीले रंग के धब्बे दिखना शामिल है. पत्तियां सिरे से सूखकर मुड़ने लगती हैं, जबकि बीच की पसली हरी बनी रहती है. सुबह के समय नई पत्तियों पर दूधिया या पारदर्शी बूंदें दिखना भी इसका एक प्रमुख लक्षण है. गंभीर संक्रमण होने पर पत्तियां जल्दी सूख जाती हैं।

प्रबंधन और उपचार के उपाय

बीज शोधन: फसल को 70% तक रोग से बचाने के लिए शुरुआती चरण में ही स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट+टेट्रासाइक्लिन (4-0 ग्राम प्रति 25 किलोग्राम बीज) का उपयोग करके बीज शोधन करना चाहिए.

छिड़काव: रोग के लक्षण दिखने पर स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट+टेट्रासाइक्लिन (30 ग्राम) और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (1.25 किलोग्राम) को प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

पोषक तत्व प्रबंधन: गर्भावस्था के दौरान म्यूरेट ऑफ पोटाश (6 ग्राम/लीटर), जिंक उर्वरक (4 ग्राम/लीटर) और एलिमेंटल सल्फर (6 ग्राम/लीटर) का छिड़काव किया जा सकता है. यदि हवा या बारिश के बाद लक्षण फिर से दिखें, तो 7 दिन के अंतराल पर यही घोल दोबारा छिड़कें.

नाइट्रोजन का कम उपयोग

नाइट्रोजन उर्वरक का उपयोग कम करें और जरूरत पड़ने पर इसे विभाजित खुराकों में दें. एक खेत से दूसरे खेत में सिंचाई का पानी बहने न दें.

शीथ ब्लाइट (तना का झुलसा): लक्षण और प्रबंधन

यह एक फंगल रोग है, जो उच्च आर्द्रता, गर्म तापमान और घनी फसल वाले खेतों में तेजी से फैलता है. इसके लक्षणों में पत्तियों पर भूरे धब्बे बनना शामिल है, जो धीरे-धीरे बड़े होकर तने पर लंबे बैंड (पट्टियां) बना लेते हैं. इससे पौधे सूख जाते हैं और उपज पर बुरा असर पड़ता है।

प्रबंधन और उपचार के उपाय

जुताई: गर्मी में खेत की गहरी जुताई करने से इस रोग को नियंत्रित करने में मदद मिलती है. बीज शोधन: बीज को स्यूडोमोनास फ्लूरोसेन्स या ट्राइकोडर्मा (10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से शोधित करें. पौध उपचार: रोपाई से पहले, एक हेक्टेयर के बिचड़ों को 100 लीटर पानी में 2.5 किलोग्राम स्यूडोमोनास फ्लूरोसेन्स/ट्राइकोडर्मा मिलाकर 30 मिनट तक डुबोकर रखें.

उर्वरक और खरपतवार प्रबंधन

उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग न करें. पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें और खेत से खरपतवार हटा दें. जल प्रबंधन: संक्रमित खेत से स्वस्थ खेत में पानी के बहाव को रोकें. रासायनिक उपचार: प्रोपिकोनाजोल 25% EC या अजोक्सीस्ट्रोम्बीन 7.1% + प्रोपिकोनाजोल 11.9% SE (500 ग्राम) को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

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