फर्रुखाबाद में हल्दी की खेती: कम मेहनत, बंपर मुनाफा
फर्रुखाबाद में हल्दी की खेती एक लोकप्रिय कृषि गतिविधि बनती जा रही है. इस फसल के चमत्कारी औषधीय गुणों के कारण, हल्दी की खेती करने वाले किसानों को अच्छी आमदनी मिलती है और साथ ही सेहत को भी दुरुस्त रखने में मदद मिलती है.
कम मेहनत, बंपर मुनाफा
कंधरापुर निवासी किसान महेश बताते हैं कि वह हर साल कई बीघा खेत में हल्दी की खेती करते हैं. उनका कहना है कि इस फसल में कम मेहनत लगती है और मुनाफा अच्छा मिलता है. एक बीघा में बुवाई के लिए लगभग 15 हजार रुपये की लागत आती है, जबकि यह 50 से 80 रुपये प्रति किलो तक बिक जाती है. करीब 90 से 120 दिनों में फसल तैयार हो जाती है और एक बीघा से 4 से 5 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है.
छुट्टा मवेशियों से सुरक्षित
किसानों के अनुसार, हल्दी की खेती का एक बड़ा फायदा यह है कि इसमें छुट्टा मवेशी नुकसान नहीं करते. पशु हल्दी के पौधों को कम खाते हैं और कंद (गांठ) जमीन के भीतर होने से यह सुरक्षित रहती है. इस वजह से हल्दी की फसल अन्य फसलों की तुलना में नुकसान से बची रहती है.
खेत से डबल फायदा
हल्दी की खेती से किसानों को एक और फायदा यह है कि पौधों को अलग करने के बाद इन्हें खेत में इकट्ठा करके जैविक खाद तैयार की जाती है. इससे अगली फसलों की पैदावार बढ़ जाती है. इस तरह किसान हल्दी से दोहरी कमाई कर लेते हैं.
सेहत का खज़ाना
हल्दी में औषधीय गुणों की भरमार होती है. यह एंटी-इन्फ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीट्यूमर, एंटीसेप्टिक, एंटीवायरल गुणों के साथ हृदय, किडनी और लिवर को स्वस्थ रखने में सहायक मानी जाती है. यही कारण है कि इसे सुपरफूड कहा जाता है. हल्दी शरीर को ऊर्जा देती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करती है.
खेती का तरीका
किसान बताते हैं कि हल्दी की खेती के लिए ऐसी भूमि चुननी चाहिए जहां पानी की निकासी अच्छी हो. इसके बाद गुणवत्तायुक्त बीजों की बुवाई की जाती है. समय-समय पर सिंचाई और निराई-गुड़ाई से पौधे अच्छी तरह बढ़ते हैं. तय समय पर फसल को जमीन से निकालकर साफ किया जाता है और फिर मंडी में बिक्री कर दी जाती है.
अंत में, फर्रुखाबाद में हल्दी की खेती एक लाभकारी और स्वस्थ विकल्प है, जो किसानों को अच्छी आमदनी और सेहत के लिए फायदा पहुंचाती है.

