उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में महाव नाला फिर से टूट गया है, जिससे किसानों की मेहनत पर पानी फिर गया है. खेतों में भरते पानी से धान और खरीफ की फसलें डूब गई हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि हर साल नाले की मरम्मत का वादा किया जाता है, लेकिन वास्तविकता में स्थिति जस की तस बनी रहती है.
महराजगंज जिले के सीमावर्ती क्षेत्र का महाव नाला एक बार फिर टूट गया है. नाले के टूटने के बाद आसपास के किसानों के खेत बाढ़ की चपेट में आ गए हैं. बारिश के मौसम में नाले का बार-बार टूटना इस बात की गवाही देता है कि महाव नाले की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. हर साल मरम्मत का वादा किया जाता है, लेकिन जमीन पर हालात कुछ और ही दिखाई देते हैं.
लोकल 18 की टीम ने मौके पर पहुंचकर पाया कि महाव नाला पूरी तरह से टूट चुका है और उसके आसपास के खेतों में पानी भर चुका है. स्थानीय निवासी मंटू दुबे ने बताया कि इस पानी से धान और खरीफ की फसलें पूरी तरह से बर्बाद होने की कगार पर हैं. कई किसान अपनी मेहनत और कमाई से बीज बोते हैं, लेकिन पानी भर जाने की वजह से उनकी पूरी मेहनत बेकार हो गई है. महाव नाले की मरम्मत स्थाई रूप से न होने के कारण यह संकट हर साल दोहराया जाता है. किसानों का कहना है कि प्रशासन केवल कागजों पर मरम्मत का दावा करता है, जबकि जमीन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती.
ग्रामीणों का आरोप है कि स्थानीय प्रशासन हर साल सिंचाई विभाग के जरिए मरम्मत का दावा करता है, लेकिन हकीकत यह है कि काम सिर्फ कागजों पर ही पूरा होता है. घटिया निर्माण और खानापूर्ति की वजह से पहले ही बरसात में नाला जवाब दे देता है. बारिश के मौसम में महाव नाले का बार-बार टूटना इस बात की गवाही देता है कि नाले की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. हर साल मरम्मत का वादा तो किया जाता है, लेकिन जमीन पर हालात कुछ और ही नजर आते हैं. यही वजह है कि नाले के टूटने से किसानों को हर साल अपनी फसल बर्बाद होने का सामना करना पड़ता है.
किसानों का कहना है कि हर साल यह उम्मीद होती है कि अगले साल नाले की स्थाई मरम्मत कर दी जाएगी और फसल बर्बाद होने से बच जाएगी, लेकिन प्रशासन की लापरवाही की वजह से उन्हें हर साल यही मुश्किल हालात झेलने पड़ते हैं. महाव नाले का टूटना न केवल फसलों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि स्थानीय किसानों की मेहनत और जीवनयापन पर भी गंभीर असर डालता है. ग्रामीणों के अनुसार नाले का बारिश में 2 बार-बार टूटना सिर्फ किसानों की फसलों की बर्बादी नहीं है, बल्कि यह प्रशासन की नाकामी और भ्रष्ट व्यवस्था की खुली तस्वीर है. ऐसे में सवाल यह है कि आखिर कब तक किसान प्रशासन की इस लापरवाही की कीमत चुकाते रहेंगे.