चित्रकूट में आज भी होती है ब्रिटिश काल से शुरू रामलीला
चित्रकूट रेलवे स्टेशन के मैदान में रामलीला का भव्य आयोजन होता है, जो इस बार भी शुरू हो चुका है. अक्टूबर को इसका समापन होगा. परंपरा के मुताबिक यह आयोजन चित्रकूट के प्रतिष्ठित व्यापारी स्व. भैरों प्रसाद गोयल ने प्रारंभ किया था. धर्म और आस्था की नगरी चित्रकूट वैसे तो सालभर धार्मिक कार्यक्रमों से गुलजार रहती है, लेकिन यहां की ऐतिहासिक रामलीला का अपना अलग ही महत्व है. यह रामलीला ब्रिटिश काल से लगातार आयोजित की जा रही है. अब तक अपने 85 वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है. भक्त पूरे वर्ष इस आयोजन का बेसब्री से इंतजार करते हैं और रामकथा सुनकर अपने जीवन को सार्थक मानते हैं.
चित्रकूट रेलवे स्टेशन के मैदान में रामलीला का भव्य आयोजन होता है, जो इस बार भी शुरू हो चुका है. 2 अक्टूबर को इसका समापन होगा. परंपरा के मुताबिक यह आयोजन चित्रकूट के प्रतिष्ठित व्यापारी स्व. भैरों प्रसाद गोयल ने प्रारंभ किया था. चित्रकूट में ही संत गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी. यहां रामलीला परंपरा का अंग बन गई है.
दूर दूर से आते है कलाकार इस रामलीला की सबसे खास बात यह है कि इसमें न केवल चित्रकूट बल्कि अयोध्या, बनारस, प्रयागराज, बांदा और अन्य शहरों से आए कलाकार अपनी शानदार प्रस्तुतियां देते हैं. दर्शकों को लगता है मानो वे स्वयं रामायण काल में पहुंच गए हों, जिससे वहां का पूरा स्थान भक्ति मय हो जाता है.
35 वर्षों से संभाल रहे कमान पिछले 35 वर्षों से रामलीला के आयोजक राजीव अग्रवाल बताते हैं कि यह आयोजन हमारे पूर्वजों के संकल्प और आस्था का परिणाम है, अंग्रेजों के शासनकाल में जब इस तरह के धार्मिक आयोजन करना एक बड़ी चुनौती माना जाता था, तब भी हमारे बुजुर्गों ने इसे जीवित रखा. आज उन्हीं की परंपरा को आगे बढ़ाया जा रहा है. रामलीला समाज के प्रबंधक गुलाब गुप्ता का कहना है कि यह रामलीला न केवल चित्रकूट की पहचान है बल्कि यहां की सांस्कृतिक धरोहर भी है. उन्होंने बताया कि आज भी अंग्रेजी शासनकाल में उपयोग किए गए राम, लक्ष्मण और माता सीता के वस्त्र सुरक्षित रखे गए हैं और हर साल इस आयोजन में उनका प्रयोग होता है, यही कारण है कि इस रामलीला का महत्व और भी बढ़ जाता है.