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161 प्राचीन प्राकृतिक स्थलों का दस्तावेजीकरण किया गया है।

उत्तराखंड के पवित्र स्थलों की सुरक्षा के लिए चिंता बढ़ रही है

उत्तराखंड में स्थित पवित्र वन, पवित्र झाड़ियाँ, अल्पाइन मैदान और उच्च ऊंचाई वाले जल स्रोतों को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन पवित्र वनों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें करता है। इन स्थलों का महत्व है, लेकिन वे तेजी से पर्यटन, अतिक्रमण, पशुओं का चरना, ईंधन का संग्रहण और पारंपरिक विश्वासों में कमी के कारण बढ़ती दबावों का सामना कर रहे हैं।

तपकेश्वर और साहस्त्राधार जैसे केंद्रों के पास स्थित पवित्र वन पहले से ही पारिस्थितिक तनाव का संकेत दे रहे हैं, जो सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता को दर्शाते हैं। इन स्थलों की सुरक्षा के लिए यह अध्ययन सिफारिश करता है कि वन्य जीवन प्रबंधन और संरक्षण योजनाओं में पवित्र वनों को शामिल किया जाए। यह सिफारिश करता है कि स्थानीय समुदायों को पार्टिसिपेट्री प्रबंधन के माध्यम से सशक्त किया जाए, जिसमें पारंपरिक सम्मान को आधुनिक साधनों के साथ जोड़ा जाए। यह परियोजना जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जाइका) के अनुदान से चल रही है, जो उत्तराखंड की पारिस्थितिकी, संस्कृति और आध्यात्मिक पहचान के बीच गहरे संबंध को दर्शाती है।

अध्ययन में 161 स्थलों का दस्तावेजीकरण किया गया है, जिनमें से 83 पवित्र वन, 62 पवित्र झाड़ियाँ, 12 अल्पाइन मैदान और चार उच्च ऊंचाई वाले जल स्रोत शामिल हैं – नंदी कुंड, सतोपनाथ टाल, श्री हेमकुंड साहिब और काक भुसंडी टाल।

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