Uttar Pradesh

सरसों की खेती किसानों को बना देगी करोड़पति ! यहां जानें कैसे और कब करें बुवाई

सरसों की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प है, खासकर उत्तर भारत में। इसकी बुवाई का सही समय अक्टूबर से नवंबर के बीच होता है, जब तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस होता है। सरसों की खेती के लिए ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई हल से और बाद की जुताई हैरो से करनी चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। खेत में पर्याप्त नमी होना भी जरूरी है, जिससे बीज अंकुरित हो सके। बीज बोने से पहले उसका शोधन करना चाहिए ताकि रोगों से बचाव हो सके। सामान्यत: सरसों की बुवाई 4 से 5 किलो बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होती है। बीजों को 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोना बेहतर रहता है।

सिंचाई की बात करें तो इसकी पहली सिंचाई बुवाई के तीन सप्ताह बाद और दूसरी फूल आने पर करनी चाहिए। अगर समय पर बारिश हो जाए तो सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है। खेती में उर्वरक और खाद का भी अहम योगदान होता है। सरसों की पैदावार बढ़ाने के लिए खेत में गोबर की खाद के साथ-साथ नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग जरूरी है।

रोगों और कीटों से बचाव के लिए समय-समय पर फसल की निगरानी करनी चाहिए। सामान्यत: सरसों की फसल 110 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की खेती किसानों के लिए अच्छा आय का जरिया है। एक एकड़ खेत से औसतन 8 से 10 क्विंटल सरसों की पैदावार मिल जाती है।

वर्तमान समय में बाजार भाव 5,000 से 6,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलता है। इस हिसाब से किसान एक एकड़ से 40,000 से 60,000 रुपये तक की आमदनी कर सकते हैं। इसमें लागत लगभग 10,000 रुपये तक आती है, जिससे शुद्ध मुनाफा 30,000 से 50,000 रुपये तक आसानी से हो सकता है।

सरसों का उपयोग केवल तेल निकालने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका इस्तेमाल मसालों, अचार और पशु चारे में भी होता है। सरसों के तेल को औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है, जो त्वचा और बालों के लिए लाभकारी है। इसके अलावा सरसों की खली पशुओं के चारे में मिलाई जाती है, जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर होता है।

इस प्रकार, सरसों की खेती एक लाभकारी विकल्प है जो किसानों को करोड़पति बना सकती है। इसके लिए सही समय, तैयारी और देखभाल की आवश्यकता होती है।

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